जहाँ अपनापन रहता था कभी …
वहाँ सूनापन बसने लगा है
वसंत के डाल पे हो सवार …
पतझड़ कमर कसने लगा है ….
सूना आँगन सूनी गली ….
सूना हो गया मन …
प्रियजन के बिछोह से …
तरसे दोनों नयन …
एक वक्त वो था जब …
काँटे भी नहीं चुभते थे
एक वक्त ऐसा भी आया
जब फूलों ने लहुलहान किया ….
घर (मायका) के कोने -कोने से
बही प्रेम की पुरवाई ….
बिछड़ गए जो जीवन-पथ पर
उनपर यादों के फूल चढ़ा आई …
घर (मायका) के कोने -कोने से
ReplyDeleteबही प्रेम की पुरवाई ….
बिछड़ गए जो जीवन-पथ पर
उनपर यादों के फूल चढ़ा आई …
बहुत सुंदर लिखा है,शुभकामनाये
yaado ko sajaya hai shabdo me aapne ................sundar..........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसूना आँगन सूनी गली ….
ReplyDeleteसूना हो गया मन …
प्रियजन के बिछोह से …
तरसे दोनों नयन …
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति आज गुरुवार (25-07-2013) को "ब्लॉग प्रसारण- 66,सावन के बहारों के साथ" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
ReplyDeletedhanyavad rajendra jee .....
Deletedhanyavad shastri jee .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteसार्थक प्रकटिकरण। कांटों का चुभना नहीं और फूलों से लहूलहान होना मनुष्य जीवन की विसंगति को बताता है। बस हमें ऐसे प्रसंगों में सब्र से काम लेना है और अपनी एकाग्रता को बनाए रखना है। परीक्षा की घडियों में ही हम अपने आप को परख सकते हैं और दुनिया को भी।
ReplyDeleteबिल्कुल सही सोच और सलाह है आपकी शिंदे साहब …. धन्यवाद आपके अमूल्य सुझाव के लिए …।
ReplyDeleteसुन्दर ,सटीक और सार्थक . बधाई
ReplyDeleteसादर मदन .कभी यहाँ पर भी पधारें .
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
हर स्त्री आपके इन भावों को समझ सकती है .... बहुत भावपूर्ण
ReplyDeleteबिछड़ गए जो जीवन-पथ पर
ReplyDeleteउनपर यादों के फूल चढ़ा आई …
...........बहुत सुंदर !!
एक वक्त वो था जब …
ReplyDeleteकाँटे भी नहीं चुभते थे
एक वक्त ऐसा भी आया
जब फूलों ने लहुलहान किया ….
कभी कभी ऐसा समय आता है जब यादें सताती हैं बीते दिनों की ... ऐसे में हर चीज़ मन के भावों को उद्वेलित करती है ...
बहुत सुन्दर स्त्री मन का सटीक चित्रण ...आभार
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteखूबसूरती से यादों को उकेरा आपने.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति … अच्छी लगी आपकी ये कविता
ReplyDeleteregards
बहुत ही भावप्रवण प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDelete..साभार
ReplyDeleteबहुत बेहद के अपनों से बिछड़ने का भाव पूर्ण शब्द संगम सलामत रहे तू जहां भी रहे तू। ॐ शान्ति।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपकी भावपूर्ण रचना आँखों में आंसू ले आई बहुत सही....
ReplyDeletebetiyon ka dard saman hota hai ranjana jee ...
Deleteबहुत खूबसूरत और भावपूर्ण रचना, शानदार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी ,भावप्रधान लेखन |
ReplyDeleteजीवन पथ पर अनेको मिलेंगे ,
तो कुछ के साथ छूट भी सकते हैं ....
एक शाम संगम पर {नीति कथा -डॉ अजय }
बिछड़ गए जो जीवन-पथ पर
ReplyDeleteउनपर यादों के फूल चढ़ा आई …
वाह ..
बधाई आपको !
भावपूर्ण रागात्मक ता के टूटने का विछोह इस रचना में मुखरित हुआ है।
ReplyDeleteएक वक्त वो था जब …
ReplyDeleteकाँटे भी नहीं चुभते थे
एक वक्त ऐसा भी आया
जब फूलों ने लहुलहान किया ….
बहुत ही मर्मस्पर्शी , अंतस् से उपजी रचना....
भावपूर्ण
ReplyDeleteएक वक्त वो था जब …
ReplyDeleteकाँटे भी नहीं चुभते थे
एक वक्त ऐसा भी आया
जब फूलों ने लहुलहान किया
Bahut hi bhavpurn rachna.. sundar..
बहुत ही भावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत बढिया