यूँ ही टूटते
मन अधीर न हो ....
अंतरात्मा की आवाज
मन का विस्तार
है सृजन का संसार ....
बेचैन मन
स्वप्निल संसार
ऊर्जा का भंडार ..
अदृश्य ताकत
समय की पुकार
सृजन -संसार ...
जब हद पार हो जाए तो ?
दर्द दवा बन जाती है
इन्हीं दवाओं के सहारे
जिन्दगी कट जाती है ...
वक्त ने ली अंगराई
बचपन के दिन याद आये
फलक पे जब भी सितारे नज़र आये .....
छीना है वक्त ने
मेरी माँ को मुझसे
वक्त ने ही माँ भी बनाया है मुझको ...
बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteछीना है वक्त ने
मेरी माँ को मुझसे
वक्त ने ही माँ भी बनाया है मुझको ..
मन को छू गई यें पंक्तियां..
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं
ReplyDeleteकोमल एवं मनभावन...
:-)
"मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी की आसान हो गईं "
ReplyDeleteजब हद पार हो जाए तो ?
दर्द दवा बन जाती है
इन्हीं दवाओं के सहारे
जिन्दगी कट जाती है ..
छीना है वक्त ने
मेरी माँ को मुझसे
वक्त ने ही माँ भी बनाया है मुझको ...
समय करे नर क्या करे ,समय समय की बात ,
किसी समय के दिन बड़े ,किसी समय की रात .
बढ़िया प्रस्तुति निशा नारायण जी .सलामत रहो .आबाद रहो .अपनों की यादों में रहो सदैव .
कैग नहीं ये कागा है ,जिसके सिर पे बैठ गया ,वो अभागा है
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2012/09/blog-post_2719.html
अनुभव प्रधान अभिव्यक्ति -अच्छी लगी .
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट में आपका इंतजार है .जरुर आयें और अपनी राय से अवगत कराएँ.
छीना है वक्त ने
ReplyDeleteमेरी माँ को मुझसे
वक्त ने ही माँ भी बनाया है मुझको ...
आपने जीवन को जिन रंगों में जिया है वही रंग उभर आये हैं आपकी भावनाओं के
छीना है वक्त ने
ReplyDeleteमेरी माँ को मुझसे
वक्त ने ही माँ भी बनाया है मुझको ...
....बहुत खूब! सभी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर...
जब हद पार हो जाए तो ?
ReplyDeleteदर्द दवा बन जाती है
इन्हीं दवाओं के सहारे
जिन्दगी कट जाती है
bahut hi sundar kavita...
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteवक्त ने ली अंगराई
बचपन के दिन याद आये
फलक पे जब भी सितारे नज़र आये .....
प्यारी क्षणिकाएं निशा जी....
सस्नेह
अनु
बहुत ही बढ़िया । मेरे नए पोस्ट समय सरगम पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया । मेरे नए पोस्ट समय सरगम पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद।
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं अच्छी लगीं।
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