Thursday, March 7, 2013

साथी तेरे बिन

ब्लोगर साथियों ..आज .मै  एक विधुर की डायरी के कुछ अंश जो उन्होंने अपनी  स्वर्गीय  पत्नी
को  संबोधित करके  लिखा था ....को.मै . कविता के रूप में प्रस्तुत कर
रही हूँ ..और इस कविता को महिला दिवस के अवसर पर अपने माता -पिता के साथ -साथ सभी पति-पत्नी को
 समर्पित कर रही हूँ .....काश कि हर पति -पत्नी को एक दुसरे की अहमियत सदैव पता रहे ......कोई किसी को
दान में मिली हुई  वस्तु न माने .....


                                                                                                                     
जीवन मेरा उपवन था ..
जब साथ तुम्हारा था प्रिये !
बनकर मालन मेरे उपवन की ....तुम ....
काँटे सब बीन लेती थीं
मेरे सारे दुःख-दर्द मुझसे कहे बिना ....
छिन लेती थीं .....
बनकर नाविक नौका का मै ..
नाव बढ़ाए जाता था
हो बेखबर दिन-दुनिया से
चैन की वंशी बजाता था ....


वही जीवन है ...
वही जगह है ..
वही रात और दिन ..
मरुस्थल बन गया जीवन मेरा ...
साथी तेरे बिन ......
यादों के गलियारों में मैं .....
बीज विरह के बोता हूँ
वियोग की पीड़ा से व्याकुल होकर ...
छिप-छिप-के रोता हूँ ......

हर पल जैसे यूँ लगता है
साँसों की डोर खो रही है ..
दुःख से मेरे कातर होकर
प्रकृति भी रो रही है ......

सहन नहीं किया था जो
वो भी सहना पड़ता है
सुना नहीं था किसी से जो
वो भी सुनना  पड़ता है ....

साथ बिताये तेरे सारे .
.पल थे मेरे अच्छे ...
संगीविहीन  हो यूँ लगता है
पराये हो गए बच्चे ....

सहधर्मिणी बन तूने सारा फर्ज
बखूबी निभाया था
मेरी सारी कमियों के साथ
तूने मुझे अपनाया था ..

अपनी अंतिम यात्रा से पहले ...
काश ध्यान मेरा रख पातीं
जीवन के अंतिम सफर में
अपने साथ मुझे ले जातीं ....






15 comments:

  1. हर पल जैसे यूँ लगता है
    साँसों की डोर खो रही है ..
    दुःख से मेरे कातर होकर
    प्रकृति भी रो रही है ..bhawpurn/marmik

    ReplyDelete
  2. पाठक को भाव शिखर पे ले जाके निस्संग छोड़ देती है यह रचना .सम्पूरक है दम्पति परस्पर .

    ReplyDelete
  3. साथ बिताये तेरे सारे .
    .पल थे मेरे अच्छे ...
    संगीविहीन हो यूँ लगता है
    पराये हो गए बच्चे ....

    सहधर्मिणी बन तूने सारा फर्ज
    बखूबी निभाया था
    मेरी सारी कमियों के साथ
    तूने मुझे अपनाया था ..

    अपनी अंतिम यात्रा से पहले ...
    काश ध्यान मेरा रख पातीं
    जीवन के अंतिम सफर में
    अपने साथ मुझे ले जातीं .

    मैंने अपने नाना नानी का असीम स्नेह देखा है और नानी के देहावसान के बाद नाना जी का अकेलापन भी मासुस किया है। 9 मामा के बीच 2 भांजा उसमे केवल मेरी सक्रियता .. रिश्तों को जिसने जिया ... आपने एहसास को जगा दिया

    ReplyDelete
  4. मैंने अपने नाना नानी का असीम स्नेह देखा है और नानी के देहावसान के बाद नाना जी का अकेलापन भी महसूस किया है। 9 मामा के बीच 2 भांजा उसमे केवल मेरी सक्रियता .. रिश्तों को जिसने जिया ... आपने एहसास को जगा दिया

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति. विधुर जीवन बहुत कष्टमय होता है लेकिन एक विधुर जो मर्द भी होता हा, टूटकर रो भी नहीं सकता.
    बहुत बधाई आपको..
    सादर
    नीरज 'नीर'
    मैने आपका ज्वाइन किया हुआ है . मेरे ब्लॉग पर आपका सर्वदा स्वागत है.
    KAVYA SUDHA (काव्य सुधा)

    ReplyDelete
  6. बहुत खूब निशा जी सुन्दर तरीके से बाँधा है आपने भावों को

    सहन नहीं किया था जो
    वो भी सहना पड़ता है
    सुना नहीं था किसी से जो
    वो भी सुनना पड़ता है ....

    ....मार्मिक

    ReplyDelete
  7. अच्छी अभिव्यक्ति!!

    ReplyDelete
  8. स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं..परन्तु किसी भी एक का न होना जीवन को कितना कष्टमय बना देता है ये आपने बखूबी अपने शब्दों में पिरोया हा, सुन्दर प्रस्तुति निशा जी.. मन भावुक हो उठा । आप मेरे ब्लॉग पर भी आमंत्रित हैं http://theparulsworld.blogspot.in/

    ReplyDelete
  9. वाह ...
    दर्द की बेहतरीन अभिव्यक्ति ...

    ReplyDelete
  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
    सादर

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये

    ReplyDelete
  11. एहसासों से लबरेज ये कविता बहुत अच्छी लगी.

    ReplyDelete
  12. सहन नहीं किया था जो
    वो भी सहना पड़ता है
    सुना नहीं था किसी से जो
    वो भी सुनना पड़ता है ...

    दर्द तो हमेशा रहता है जीवन संगी के जाने का ... ह्रदय की पीड़ा को शब्दों में उतारा है ...

    ReplyDelete
  13. बढ़िया प्रस्तुति .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .

    ReplyDelete