Tuesday, July 2, 2013

प्रशासक सभी बहरे हैं .....

पिछले साल १ ० --१ २  जून को लौटी थी केदारनाथ से ....
केदारनाथ कभी जा हीं नहीं सकती मैं ......मैं हमेशा यही सोचा करती थी 
पर अचानक पता नहीं कैसे चली गई ....किसी का साथ मिल गया या भगवान् की मर्जी कुछ कह नहीं सकती पर ..वहाँ की अव्यवस्था और खतरनाक रास्ते को देख मैंने खुद को अनेकों बार कोसा  था  कि मै  क्यों आ गई यहाँ ....और अभी जो कुछ भी वहाँ हुआ और हो रहा है ... ...उसे देख दिल बड़ा व्यथित हो रहा है ...अपने दिल के कुछ ऐसे हीं भावों को प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही हूँ ......


सिसक रही चट्टान 
आसमां है रो रहा 
निस्तब्ध है निशा 
ये कौन जा रहा बहा ?

किसी की आँखों का तारा 
किसी के जीने का सहारा 
काल-कवलित हो गया 
देखते हीं देखते 
प्रलय कहाँ से आ गया ?

नदी जो कल-कल गाती थी 
सड़कें भी इठलाती थी 
वो आज वीरानों में 
खुद से नज़र चुराती है 
कैसे भूल जाए कोई ?
यादें याद आती है ...

प्रकृति से खिलवाड़ का 
होता भयानक परिणाम 
नाम जिसका गुँजता  था 
वो हो गए बेनाम .....  

कर कल्पना उनकी 
रूह काँप जाती है 
बिछुड़ गए जो अपनों से 
उनके लिए आँखें भर-भर आती हैं .....

सत्ता ,पैसा ,जिस्मफरोशी 
में हो जाते हैं मदहोश 
अव्यवस्था का पर्याय बन गया 
प्य्रारा भारत देश ....
मरने वाले दोषी नहीं थे 
सारे थे निर्दोष 

हर गली में रावण घूमता 
धर कर राम का वेश 
कौन बने हनुमान  ?
जो पहुचाये सीता तक सन्देश ....

दुर्योधन और शूर्पनखा की जाति न कोई होती 
इतिहास पुनः दुहराया जाएगा 
सोच प्रकृति पल-पल रोती ....

कौन समझे ये बात 
सभी पे .....लालच रुपी पहरे हैं ..
सुरा -सुन्दरी में लिप्त ....
प्रशासक सभी बहरे हैं .....

आस्था ,निष्ठा और भक्ति को 
यूँ व्यर्थ न भुनाओ 
धार्मिक स्थल को धार्मिक हीं रहने दो 
उसे पर्यटन स्थल न बनाओ .....




19 comments:

  1. मर्मस्पर्शी रचना, एक छोटी सी रचना में बहुत बड़ा सन्देश , शुभकामनाये ,यहाँ भी पधारे,

    http://shoryamalik.blogspot.in/

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  2. सही कहा आपने प्रशासक सभी बहरे है.... सत्ता के मद्द में सोयें है.. बहुत अच्छी रचना !!

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  3. सच कहा आपने .....मार्मिक रचना

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  4. आपने इस रचना द्वारा सारी व्यथा कथा बयान करदी.

    रामराम.

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  5. मन को छू गई आपकी रचना
    सुंदर प्रस्तुति, बहुत सुंदर


    TV स्टेशन ब्लाग पर देखें .. जलसमाधि दे दो ऐसे मुख्यमंत्री को
    http://tvstationlive.blogspot.in/

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  6. केदारनाथ हादसे पर कई कविताएं आई और हम सब की सहानुभूति पीडित लोगों के साथ है पर पर आपने प्रशासन पर जो प्रश्न चिन्ह खडे किए हैं वह वास्तवादी है।

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  7. मर्म स्पर्शीय ... मन को छूती है आपकी रचना ...
    जल्दी ही सब ठीक हो ऐसी कामना है प्रभू से ...

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  8. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04/07/2013 के चर्चा मंच पर है
    कृपया पधारें
    धन्यवाद

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  9. कौन समझे ये बात
    सभी पे .....लालच रुपी पहरे हैं ..
    सुरा -सुन्दरी में लिप्त ....
    प्रशासक सभी बहरे हैं .....

    आस्था ,निष्ठा और भक्ति को
    यूँ व्यर्थ न भुनाओ
    धार्मिक स्थल को धार्मिक हीं रहने दो
    उसे पर्यटन स्थल न बनाओ ....
    करारा तमाचा सार्थक अभिव्यक्ति

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  10. धार्मिक स्थल को धार्मिक हीं रहने दो
    उसे पर्यटन स्थल न बनाओ .....


    बहुत ही सुन्दर सन्देश है.

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  11. किसी की आँखों का तारा
    किसी के जीने का सहारा
    काल-कवलित हो गया
    देखते हीं देखते
    प्रलय कहाँ से आ गया ?---बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
    latest post मेरी माँ ने कहा !
    latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )


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  12. माई बिग गाइड पर सज गयी 100 वीं पोस्‍ट, बिना आपके सहयोग के सम्‍भव नहीं थी, मै आपके सहयोग, आपके समर्थन, आपके साइट आगमन, आपके द्वारा की गयी उत्‍साह वर्धक टिप्‍पणीयों, तथा मेरी साधारण पोस्‍टों व टिप्‍पणियों को अपने असाधारण ब्‍लाग पर स्‍थान देने के लिये आपका हार्दिक अभिनन्‍दन करता हॅू और आशा करता हॅू कि आपका सहयोग इसी प्रकार मुझे मिलता रहेगा, एक बार फिर ब्‍लाग पर आपके पुन आगमन की प्रतीक्षा में - माइ बिग गाइड और मैं

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  13. सभी को जहाँ नहीं मिलती | मर्मस्पर्शी

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  14. मार्मिक रचना , बहुत सुंदर
    यहाँ भी पधारे ,

    हसरते नादानी में

    http://sagarlamhe.blogspot.in/2013/07/blog-post.html

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  15. बहुत अच्छी रचना

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  16. यूँ व्यर्थ न भुनाओ
    धार्मिक स्थल को धार्मिक हीं रहने दो !

    .........सच कहा आपने .....मार्मिक रचना

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