Sunday, August 25, 2013

न जाने क्यों ?

पता नहीं क्या बात थी 
वो हमारी पहली और अंतिम मुलाकात थी 
हम कुछ वक्त एक दूसरे के साथ रहे 
कुछ उनकी सुनी
कुछ अपनी सुनाई 
बिछुड़ते वक्त वो थीं -----एक तरफ खड़ी 
अचानक मेरे गले से आ लगीं,…  फिर ----
न जाने क्यों ?
उनकी आँखें छलक पड़ीं 
बरसों बाद कोई औरत मुझे 
मेरी माँ जैसी लगीं 
न जाने क्यों ?

12 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (26-08-2013) को सुनो गुज़ारिश बाँकेबिहारी :चर्चामंच 1349में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. निस्स्वार्थ प्रेम का मानवीय रूप है यह प्रेम मिलन।

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  3. निस्स्वार्थ प्रेम का मानवीय रूप है मूर्तन है यह प्रेम मिलन।

    न जाने क्यों ?
    पता नहीं क्या बात थी
    वो हमारी पहली और अंतिम मुलाकात थी
    हम कुछ वक्त एक दूसरे के साथ रहे
    कुछ उनकी सुनी
    कुछ अपनी सुनाई
    बिछुड़ते वक्त वो थीं -----एक तरफ खड़ी
    अचानक मेरे गले से आ लगीं,… फिर ----
    न जाने क्यों ?
    उनकी आँखें छलक पड़ीं
    बरसों बाद कोई औरत मुझे
    मेरी माँ जैसी लगीं
    न जाने क्यों ?

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  4. ऐसे में बेहद पिछले जन्म का कुछ नाता तो अवश्य रहता है .... सुंदर रचना

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  5. बहुत ही गहन और प्रेम में पगी रचना.

    रामराम.

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  6. भावभरी प्रस्तुति!

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  7. sundar bhav ...........shayad prem ka yah rup apnapan hai............

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  8. शुक्रिया आपकी टिपपणी का।

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  9. मार्मिक बिछोड़ा जीवन का। शुक्रिया आपकी टिपण्णी का।

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  10. ऐसा भी होता है कभी कभी बहुत मार्मिक प्रस्तुति ।

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