Monday, September 23, 2013

मृगतृष्णा के जाल में फँसकर

चंद सिक्कों की खातिर 
रिश्तों को दाँव पर लगा देते हैं लोग 
हँसती हुई आँखों को आँसू देकर 
पता नहीं कैसे जी लेते हैं लोग.

क्षणिक सुख की खातिर 
भविष्य को अंधकारमय बना देते हैं लोग 
मृगतृष्णा के जाल में फँसकर 
नेह को नरक बना देते हैं लोग.… 

10 comments:

  1. हमें प्यार के लिए वक़्त कम पड़ता है
    लोग तकरार के लिए समय कैसे निकाल लेते हैं
    सार्थक अभिव्यक्ति

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  2. प्रलोभन मनुष्य को इतना कमजोर बना देते हैं कि बहुत मुश्किल हो जाता है आत्मरक्षा करना. सुन्दर रचना.

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  3. स्वार्थ पर प्रकाश डालने वाली लघु पर सार्थक कविता।

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  4. बहुत सार्थक एवं सुन्दर रचना..

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  5. परकीया प्रेम है यह मृग तृष्णा ,वासना और कामनाएं कभी तृप्त नहीं होतीं।ऐसे व्यक्ति को माया ही एक दिन कच्चा चबा जाती है।

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  6. सार्थक सुन्दर रचना....

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  7. आज रिश्ते पैसे से हार गए हैं .. भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

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  8. आज का कडवा सच यही है.

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