Friday, April 18, 2014

उन्हें मालूम नहीं

एक बार फिर किसी ने 
भरते जख्मों को झिंझोड़ा है 
चुनौतियों का समन्दर है 
सम्बल बहुत थोड़ा है.…पर… 

                          उन्हें मालूम नहीं 
लोहे से बनीं नहीं मैं..... जो.…
टूट कर बिखर जाऊँगी 
मोम सी प्रकृति है मेरी,,, मैं.…
पिघलकर फिर जम जाऊँगी

माँ-बहन-बेटी -पत्नी या प्रेमिका हीं नहीं मैं..... 
सृष्टि का  आधार हूँ 
आहों के बीच पली मैं 
खुशियों की किलकारी हूँ 
चुनौती देनेवाले हर शख्स की आभारी हूँ 
जीवन को जीवन देनेवाली मैं 
एक संवेदनशील नारी हूँ.…… 


16 comments:

  1. सटीक और मुखर अभिव्यक्ति...

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  2. उन्हें मालूम हो न हो, हमें खूब मालूम है…मोम जब अपनी पर आता है, फौलाद हो जाता !!
    बहुत खूबसूरत अंदाज़ ....

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    1. मनोबल बढ़ाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद सर ......

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  3. चुनौतियों का समन्दर है
    सम्बल बहुत थोड़ा है .. बहुत सुन्दर
    लोहे से बनीं नहीं मैं..... जो.…
    टूट कर बिखर जाऊँगी
    मोम सी प्रकृति है मेरी,,, मैं.…
    पिघलकर फिर जम जाऊँगी.. क्या कहने बहुत उम्दा ...

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  4. धन्यवाद और आभार ......

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  5. धन्यवाद और आभार ......

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  6. नारी के अंतर्मन की अथाह गहराई और उसके हिमालय से अडिग आत्मविश्वास को इतनी सशक्त एवं सार्थक अभिव्यक्ति देने के लिये बधाई निशा जी ! एक अत्यंत उत्कृष्ट रचना !

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  7. बहुत सुन्दर और प्रभावी रचना...

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  8. SRUSHTI KA AADHAR HOON , AAHON KE BEECH PALI KHUSHIYON KI KILKARI HOON., WAH.

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  9. धन्यवाद आशा जी ......

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  10. नारी के मन के भावों को बहुत गहराई से उकेरा...

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  11. क्या खूब कहा आपने ... नारी निरीह नहीं, सृष्टि का आधार है. इस सुन्दर लेख के लिए बधाई.

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