बनाना चाहो तो
बिगड़ जाता है
चाँद चाँदनी की
हर कोशिश पे
खिलखिलाता है
क्या हुआ जो
रास्ते पे चट्टान
आ गिरी
चट्टान से बचकर
निकलना मुझे आता है
बिना कुछ कहे चाँदनी
खिलखिलाती है
हो परिपूर्ण बुलंद हौसले से
चाँद से नज़रें मिलाती है
उबड़-खाबड़ रास्तों पे
रहती सबसे हिल-मिल
लहरों के रथ पे हो सवार
करती रहती झिलमिल
सुंदर !
ReplyDeleteमैडम जी, बहुत दिनों बाद दर्शन हुए....कहीं चाँद वांद पर तो नहीं चली गयी थी सैर सपाटे को!!
ReplyDeleteखैर, लौटे तो बढ़िया कविता ले कर...
लौटी नहीं थी सर यात्रा के बीच कहीं मौका मिल गया था ...प्रेरित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ....
Deleteबहुत बढ़िया .....
ReplyDeleteबढ़िया सुंदर रचना , आ. धन्यवाद !
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत बढ़िया !
ReplyDeleteबेटी बन गई बहू
सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत खूब ... लहरों के रथ पर सवार जीने की आशा लिए चांदनी ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना .......
ReplyDeleteउबड़-खाबड़ रास्तों पे
ReplyDeleteरहती सबसे हिल-मिल
लहरों के रथ पे हो सवार
करती रहती झिलमिल
ये चांदनी की खासियत है, पर उसका होना तो चांद से है।
ये गुण चांदनी के नसीब में ही हैं...
ReplyDeleteधन्यवाद शास्त्री जी ......
ReplyDeleteधन्यवाद ....
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteबनाना चाहो तो
बिगड़ जाता है
चाँद चाँदनी की
हर कोशिश पे
खिलखिलाता है
क्या खूब कहा है !