चम-चम -चम चमकते हो
अग्नि जैसे दहकते हो
उमंग-उल्लास या फिर
जो है उसमें संतुष्ट रहने की चाह
नहीं किसी से कोई आस
क्या वजह है तेरी खुशियों की ?
बता दे मुझको ओ पलाश -----
मौसम-मस्ती और तन्हाई
लिए साथ में खुशियाँ आईं
सौंन्दर्यविहीन वसुंधरा पे
भाव -विभोर हो जाते हो -----
पथभ्रष्ट मुसाफिर को
ये मूलमंत्र बतला देना
जो दिया है उसको प्रकृति ने
उसमें जीना उसे सिखा देना
मेरे,उसके,सबके मन में------
ओ पलाश तुम छा जाना--
ओ पलाश तुम छा जाना----
अग्नि जैसे दहकते हो
उमंग-उल्लास या फिर
जो है उसमें संतुष्ट रहने की चाह
नहीं किसी से कोई आस
क्या वजह है तेरी खुशियों की ?
बता दे मुझको ओ पलाश -----
मौसम-मस्ती और तन्हाई
लिए साथ में खुशियाँ आईं
सौंन्दर्यविहीन वसुंधरा पे
भाव -विभोर हो जाते हो -----
पथभ्रष्ट मुसाफिर को
ये मूलमंत्र बतला देना
जो दिया है उसको प्रकृति ने
उसमें जीना उसे सिखा देना
मेरे,उसके,सबके मन में------
ओ पलाश तुम छा जाना--
ओ पलाश तुम छा जाना----
छा गया :)
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन सब 'ओके' है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeletedhanyavad shivam jee ......
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteलेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !
सुन्दर तादात्म्य और संवाद प्रकृति नटी संग
ReplyDeleteबहुत सुंदर बात
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति
धन्यवाद शास्त्री जी ...
ReplyDeleteप्यारा पलाश !! सुंदर !!
ReplyDeleteओ पलाश .. बहुत ही सुन्दर भावावियक्ति..
ReplyDeleteबहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteपलाश कि प्राकृति को बाखूबी उकेरा है रचना में ... बहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आकर अपने सुझाव दे !
मन के दार्शनिक पष्ठभूमि में लिखी गई कविता बेहद अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteReally we have so much to learn from nature:)
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