बहुत दिनों के बाद थोड़ी सी राहत मिली है.सोचा इस पल को यादगार बना लूँ …२९ दिसम्बर २०१३ की रात में देखे गए सपने की झलक को २९ जून २०१४ में वास्तविक रूप में घटते देखा,,,, कोई माने या न माने ,,,,पर मैं मान गई.… मेरे उसी सपने को समर्पित है मेरे दिल के ये उदगार ------
अपने-अपने स्वार्थ की खातिर
सही राह से भटका देते हैं
सपना ---सपने में आकर
मुझे राह दिखलाते हैं ----
नहीं चाहिए ऐसे अपने
नहीं चाहिए कोई नाम
मेरे अपने सपने हैं
उनको मेरा सलाम ------
अपने-अपने स्वार्थ की खातिर
सही राह से भटका देते हैं
सपना ---सपने में आकर
मुझे राह दिखलाते हैं ----
नहीं चाहिए ऐसे अपने
नहीं चाहिए कोई नाम
मेरे अपने सपने हैं
उनको मेरा सलाम ------
Bahut Badhiya.....
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@दर्द दिलों के
नयी पोस्ट@बड़ी दूर से आये हैं
होता है कई बार ... अपनों की जैलिसी काम बिगाड़ देती है पर सही राह मिल जाए तो और क्या चाहिए ....
ReplyDeletebahut sundar.......
ReplyDeleteनयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना , मंगलकामनाएं आपको !
ReplyDeleteSalam hamara bhi, apke sapno ko!
ReplyDeletedhanyavad sir ....
Deleteमेरी तरफ से भी सलाम
ReplyDeletedhanyavad kaushik jee .......
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