यादें तेरी गलियाँ
जब,जबरन मानस पे छाती है
उखड़ा-उखड़ा दिल रहता है
आँखें छलक जाती है,,,,,,,
अपनों का नेह
वो निश्छल स्नेह
वो ममता की छाया
किसने चुराया ?
छोटी-छोटी बातें हैं
रहस्य है गम्भीर
हँसकर जिसने इनको झेला
उसे कहते हैं वीर,,,,,,,
विचित्रताओं की दुनिया है
अपनों में अपना है कौन ?
हर पल दिल उन्हें ढूँढता
प्रकृति भी है मौन,,,,,,
जब,जबरन मानस पे छाती है
उखड़ा-उखड़ा दिल रहता है
आँखें छलक जाती है,,,,,,,
अपनों का नेह
वो निश्छल स्नेह
वो ममता की छाया
किसने चुराया ?
छोटी-छोटी बातें हैं
रहस्य है गम्भीर
हँसकर जिसने इनको झेला
उसे कहते हैं वीर,,,,,,,
विचित्रताओं की दुनिया है
अपनों में अपना है कौन ?
हर पल दिल उन्हें ढूँढता
प्रकृति भी है मौन,,,,,,
ऐसी वीरान जगह अकेले जाती क्यों हो, मैडम जी ....यादें पीछे नहीं पड़ेंगी तो और क्या होगा?
ReplyDeleteअकेली नहीं थी सर ....पतिदेव साथ में थे ....पर भावनाओं की अभिवयक्ति अकेले में ही होती है न ? जिनका साया सिर
Deleteसे उठ गया उनकी यादें सताती है ....बहुत सारे भुक्तभोगी होंगे उनको हिम्मत बंधाने का प्रयास मात्र है मेरी ये रचना ...
सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteकभी नहीं भूलती ये गलियाँ ...
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