सच कहूँ माँ.....
मुझे तुम्हारी नहीं
तुम्हारी उन बातों कि याद आती है
जब मुझे रुलानेवाले से तुम
हमेशा कुपित हो जाती थीं
बड़े प्यार से --मान --मनुहार से
मनपसंद खाना खिलाती थी
जब किसी वजह से मैं
खुद से हीं रूठ जाती थी
मेरे सपने , मेरी खुशियाँ थे
तेरे जीवन के आधार
मनोयोग से करती थीं
उन सपनों को साकार
तेरे बिन ------
जीवन के इस धूप -छाँह में
संघर्षों के सबल बाँह में
जब अनायास मुस्कुराती हूँ
उसी समय
पता नहीं क्यों ----माँ -----
तुम बहुत --बहुत ---बहुत --बहुत याद आती हो।
सभी माँओं को समर्पित है मेरे दिल के ये उदगार । माँ अपनी बेटियों को सिर्फ आत्म विश्वास रूपी पंख दे --जीवन का जंग वो खुद ही जीत लेगी।
मुझे तुम्हारी नहीं
तुम्हारी उन बातों कि याद आती है
जब मुझे रुलानेवाले से तुम
हमेशा कुपित हो जाती थीं
बड़े प्यार से --मान --मनुहार से
मनपसंद खाना खिलाती थी
जब किसी वजह से मैं
खुद से हीं रूठ जाती थी
मेरे सपने , मेरी खुशियाँ थे
तेरे जीवन के आधार
मनोयोग से करती थीं
उन सपनों को साकार
तेरे बिन ------
जीवन के इस धूप -छाँह में
संघर्षों के सबल बाँह में
जब अनायास मुस्कुराती हूँ
उसी समय
पता नहीं क्यों ----माँ -----
तुम बहुत --बहुत ---बहुत --बहुत याद आती हो।
सभी माँओं को समर्पित है मेरे दिल के ये उदगार । माँ अपनी बेटियों को सिर्फ आत्म विश्वास रूपी पंख दे --जीवन का जंग वो खुद ही जीत लेगी।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteA गज़ल्नुमा कविता (न पति देव न पत्नी देवी )
माँ ऐसी ही होती हैं..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..
ReplyDeleteमाँ हर पल याद आती है ...
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण शब्द ....