पल बदला घंटों में
घंटों से दिन
ऐसा लगता सदियाँ बीती
बाबुल तेरे बिन .....
मूरत वो है नही
ममत्व खिलखिला रहा
माली बदल गया पर
बाग लहलहा रहा ....
जीवन के हर मोड़ पे
याद आपकी आती है
प्रकृति के कण कण में
सूरत आपकी हीं नजर आती है
भूले बिसरे वक्त भर जाता
खुशियाँ अपरम्पार
कौन भूला सकता है भला
मातु -पिता का प्यार ?
दिन बदलता रातों में
रातों में है दिन
जीना मैंने सीख लिया
बाबुल तेरे बिन ......सर्व पितृ अमावस पर मेरे दिल के भावों का अर्पण ---- उनके लिए जिन्होंने मुझे मेरे होने के मायने समझाए थे।
जीना मैंने सीख लिया .... भावमय अभिव्यक्ति .... समय सिखा देता है सब कुछ ...... ....
ReplyDeleteसही बात सीमा जी ...धन्यवाद
ReplyDeleteसही बात सीमा जी ...धन्यवाद
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (22-09-2017) को "खतरे में आज सारे तटबन्ध हो गये हैं" (चर्चा अंक 2735) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
HARDIK AABHAR SHASTRI JEE..
Deleteवाह@
ReplyDeleteHum sab kuchh yahin se seekhte hai....
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