ऐ दिल गुनगुनाता चल
गीत ख़ुशी के गाता चल
कल क्या होगा ?
कभी न सोचो
अभी का साथ निभाता चल ....
गीत ख़ुशी के गाता चल
आनेवाले आयेंगे
जानेवाले जायेंगे
जिसको इन्तजार है तेरा
उसको तू अपनाता चल
ऐ दिल गुनगुनाता चल
गीत ख़ुशी के गाता चल ....
जहां बिछी हों
कनक-रश्मियाँ
जहां खिली हों
कागज की कलियाँ
गुंजन करते हों
जहाँ पर ...
भमरें संग
बहुरंगी तितलियाँ
उनसे नज़र बचाता चल
ऐ दिल गुनगुनाता चल
गीत ख़ुशी के गाता चल ...
मोती पाना है गर तो ?
साहिल को ठुकराता चल
गम ना कर तूं
गहराई से ....
सागर में उतराता चल
ऐ दिल गुनगुनाता चल
गीत ख़ुशी के गाता चल ...
जिसने जख्म दिए हैं तुमको
उनको भी सहलाता चल ..
धीरे-धीरे दुखी ह्रदय को
खुद से ही बहलाता चल
चलना अकेली है
नियति निशा की
उसको भी समझाता चल ....
ऐ दिल गुनगुनाता चल
गीत ख़ुशी के गाता चल ...
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ReplyDeleteजिसने जख्म दिए हैं तुमको
ReplyDeleteउनको भी सहलाता चल ..
धीरे-धीरे दुखी ह्रदय को
खुद से ही बहलाता चल
चलना अकेली है
नियति निशा की
उसको भी समझाता चल ....
ऐ दिल गुनगुनाता चल
गीत ख़ुशी के गाता चल ...
ये रही बडेपन की बातें जीवन के हर को नए अंदाज़ में जीने की तमन्ना . आपका ये भी निराला अनूठा तरीका बहुत खूब
bahut khub ese hi gungunati rahe aap sada ..
ReplyDeleteमोती पाना है गर तो ?
ReplyDeleteसाहिल को ठुकराता चल
बहुत खूब, शानदार रचना।
विजयदशमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं
ReplyDeleteबढिया, बहुत सुंदर
क्या बात
विजय दशमी की शुभकामनायें . आपकी कविता टैगोर की कविता " एकला चलो रे ......." याद दिला दी .
ReplyDelete"जिसने जख्म दिए हैं तुमको
ReplyDeleteउनको भी सहलाता चल ..
धीरे-धीरे दुखी ह्रदय को
खुद से ही बहलाता चल
चलना अकेली है
नियति निशा की
उसको भी समझाता चल ...."
बहुत सूंदर लिखा है निशा जी !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
♥(¯*•๑۩۞۩~*~विजयदशमी (दशहरा) की हार्दिक शुभकामनाएँ!~*~۩۞۩๑•*¯)♥
ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
ReplyDeleteजहां बिछी हों
कनक-रश्मियाँ
जहां खिली हों
कागज की कलियाँ
गुंजन करते हों
जहाँ पर ...
भमरें संग
बहुरंगी तितलियाँ
उनसे नज़र बचाता चल
कृत्रिमता पर कटाक्ष .
मोती पाना है गर तो ?
साहिल को ठुकराता चल
गम ना कर तूं
गहराई से ....
सागर में उतराता चल
ऐ दिल गुनगुनाता चल
गीत ख़ुशी के गाता चल ...
जिसने जख्म दिए हैं तुमको
उनको भी सहलाता चल ..
धीरे-धीरे दुखी ह्रदय को
खुद से ही बहलाता चल
चलना अकेली है
नियति निशा की
उसको भी समझाता चल ...
गीत में अविरल आगे बढ़ते जाने का आवाहन भी है दर्शन भी है :सफर आखिर अकेला है ,दुनिया का मेला है ,
निशा नारायण जी बहुत बढिया गीत लिखा है आपने .परितोष और सब्र क्या होता है आपने समझाया है इस गीत में .
बस्ती बस्ती पबत परबत गाता जाए बंजारा .....गीत सहज ही होंठों पे आ गया .....
dhanyavad virendra jee ....bada accha vishleshan kiya aapne ...
Deleteकल क्या होगा ?
ReplyDeleteकभी न सोचो
अभी का साथ निभाता चल ....
बहुत खूब, शानदार रचना।
पोस्ट
चार दिन ज़िन्दगी के .......
बस यूँ ही चलते जाना है !!
ABHEE KAA SAATH NIBHATA CHAL
ReplyDeleteSUNDAR ABHIVYAKTI !
कविता के भाव प्रेरक हैं।
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