दिनभर चलते-चलते थककर चूर
जमीं और आसमां के मिलन का प्रतीक बन ...क्षितिज ...
इन्द्रधनुषी रंग बिखरा रहा है ......
लौट रहें हैं पंछी भी,.......
कलरव करते हुए अपने बसेरे की ओर .....
मिलन के अभूतपूर्व आनंद से ....आह्लादित है ...
प्रकृति का हरेक छोर .....
.भ्रमवश ...पथ भटके हुए पथिक तुम ..कबतक ?????
यूँ ही खुद को भरमाओगे ?
इन्तजार में व्याकुल है ..घर-द्वार तुम्हारा .....तुम ..कब तक ?
घर को लौट आओगे ?
.. .. आपकी रचना को नज़र अंदाज़ करना कैसे भी सरल नहीं .. !
ReplyDeleteप्रियतम से मिलने की गुहार करती बहुत
ReplyDeleteही सुन्दर दिल को छुलेनेवाली रचना..
:-)
prem ko samjhne ke liye premras me dubna padta hai nisha ji aur prakriti ke madhyam se aapne bahut hi sundar rachna prastut ki hai
ReplyDeleteCHALIYE MERA LIKHNA SARTHAK HUA.......THANKS TO ALL...
ReplyDeleteइन्तजार में व्याकुल है ..घर-द्वार तुम्हारा .....तुम ..कब तक ?
ReplyDeleteघर को लौट आओगे ?waah bahut sarthak kehan
शायद अब तक उनकी शाम नहीं हुई ...
ReplyDeleteपर सच्चा इन्तेज़ार है तो जरूर आएंगे वो ... बहुत खूब ...
are waah maine aisa to socha hi nahi tha .....thanks....
Deleteबहुत बढि़या कविता/लेखन हैं- सारिक खान
ReplyDeletehttp://sarikkhan.blogspot.in/
दिनकर प्रियतमा के आगोश में समा रहा है .......
ReplyDeleteजमीं और आसमां के मिलन का प्रतीक बन ...क्षितिज ...
इन्द्रधनुषी रंग बिखरा रहा है ......
लौट रहें हैं पंछी भी,.......
कलरव करते ह्युए अपने बसेरे की ओर .....
प्रकृति का मानवीकरण बहुत ही सुन्दर दिल को छूती रचना .
दिनकर प्रियतमा के आगोश में समा रहा है ...
ReplyDeleteवाह !!
इंतजार और इंतजार ही तो प्रेम है इस से प्रेम की ड़ोर बंधी रहती है
ReplyDeleteभड़के हुवे राही को ये इंतजार संकेत देता रहता है
इस इंतजार को बनाये रखिये
दिल के हल बयाँ करते शब्द
इन्तजार में व्याकुल है ..घर-द्वार तुम्हारा .....तुम ..कब तक ?
ReplyDeleteघर को लौट आओगे ?
अपनेपन की क्या सुंदर बात
ReplyDeleteलौट रहें हैं पंछी भी,.......
कलरव करते ह्युए अपने बसेरे की ओर ....."हुए" कर लें .
हुए कर लें .बहुत शानदार प्रस्तुति है भाषिक प्रभा लिए अर्थ छटा लिए .
बहुत खूबसूरत भाव लिए कविता |
ReplyDeleteआशा
ReplyDeleteशुक्रिया आपकी टिपण्णी का .मुबारक प्रेम दिवस ,दाम्पत्य प्रेम ,ब्लोगिंग प्रेम .
इन्तजार में व्याकुल है ..घर-द्वार तुम्हारा .....तुम ..कब तक ?
ReplyDeleteघर को लौट आओगे ?
अपनेपन की क्या सुंदर बात
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