न जाने क्यों तरसते हो
रह-रह कर मचलते हो
कभी कटु कभी मृदु
कौतूहल से भरपूर सत्य ---तुम---
बड़े अच्छे लगते हो---
दुनियाँ आनी -जानी है
हर शख्स की अजब कहानी है
पल-पल बदलते मौसम में
अटल -अविचल रहते हो
जिसे चाहिए जैसा हिस्सा
वैसा उसे दे देते हो
सत्य तुम बड़े सच्चे हो -----
विचित्रताओं के हमराज़
खुशियों के सरताज़ सत्य ---तुम ---
बड़े अच्छे लगते हो ----
जीवन के हरेक पड़ाव में
तेरे साये के शीतल छाँह में
मैंने जीना सीख लिया है
क्या बताऊँ ! तेरे संग कैसे
खुद को मैंने जीत लिया है
आगे के जीवन में भी
संग हमेशा रहना
बनकर निर्झर निर्मल जल का
बूँद -बूँद बरसना
हंसी-ठिठोली करते तुम
प्यारे से बच्चे लगते हो
सपनों के सृजक सत्य --तुम--
बड़े अच्छे लगते हो --
ब्लॉगर साथियों नेट की आँख -मिचौनी की वजह से १ मार्च के लिय़े लिखी गई रचना को आज पोस्ट कर रही हूँ। सत्य और उसकी सच्चाई के साथ मेरे जीवन के अनुभवों का निचोड़ है इसमें -----
बहुत प्यारी अभिव्यक्ति है.....
ReplyDeleteसस्नेह
अनु
बहुत सुंदर यथार्थ भाव
ReplyDeleteप्यारा अनुभव
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर ........दिल से निकली रचना .....
ReplyDeleteसत्य ही शिव है सत्य ही सुंदर है... तो अच्छे तो लगेंगे ही ....सुंदर अभिव्यक्ति ...!
ReplyDeleteधन्यवाद शास्त्री जी ....
ReplyDeleteसुंदर रचना...
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