Tuesday, May 13, 2014

बनाना चाहो तो

बनाना चाहो तो 
बिगड़ जाता है 
चाँद चाँदनी की 
 हर कोशिश पे 
खिलखिलाता है 
क्या हुआ  जो
रास्ते पे चट्टान 
आ गिरी 
चट्टान से बचकर 
निकलना मुझे आता है 
बिना कुछ कहे चाँदनी 
खिलखिलाती है 
हो परिपूर्ण बुलंद हौसले से 
चाँद से नज़रें मिलाती है 
उबड़-खाबड़ रास्तों पे 
रहती सबसे हिल-मिल 
लहरों के रथ पे हो सवार 
करती रहती झिलमिल 





16 comments:

  1. मैडम जी, बहुत दिनों बाद दर्शन हुए....कहीं चाँद वांद पर तो नहीं चली गयी थी सैर सपाटे को!!
    खैर, लौटे तो बढ़िया कविता ले कर...

    ReplyDelete
    Replies
    1. लौटी नहीं थी सर यात्रा के बीच कहीं मौका मिल गया था ...प्रेरित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ....

      Delete
  2. सुन्दर प्रस्तुति..

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब ... लहरों के रथ पर सवार जीने की आशा लिए चांदनी ...

    ReplyDelete
  4. बहुत बढ़िया प्रस्तुति..

    ReplyDelete
  5. बहुत बढ़िया प्रस्तुति !!

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर रचना .......

    ReplyDelete
  7. उबड़-खाबड़ रास्तों पे
    रहती सबसे हिल-मिल
    लहरों के रथ पे हो सवार
    करती रहती झिलमिल
    ये चांदनी की खासियत है, पर उसका होना तो चांद से है।

    ReplyDelete
  8. ये गुण चांदनी के नसीब में ही हैं...

    ReplyDelete
  9. धन्यवाद शास्त्री जी ......

    ReplyDelete
  10. सुन्दर।
    बनाना चाहो तो
    बिगड़ जाता है
    चाँद चाँदनी की
    हर कोशिश पे
    खिलखिलाता है

    क्या खूब कहा है !

    ReplyDelete