Tuesday, September 2, 2014

कब समझोगे सौदाई ?

खुदगर्ज़ी को हमदर्दी का ज़ामा पहनाकर 
बादल ने अपनी प्यास बुझाई 
संबंधों की ये विद्रूपता… 
प्रकृति को कभी रास न आई 
जो जीवन दे सकता था 
उससे हुई तबाही 
छोटी सी इस बात को 
कब समझोगे सौदाई ?

सौदाई -पागल, सनकी, प्रेमी। 

14 comments:

  1. समझ गए मैडम, सब समझ गए..
    एकदम बढ़िया!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सर ....

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  2. वाह......बहुत बढ़िया !!
    अनु

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  3. बहुत सारगर्भित रचना...

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  4. कुछ शब्दों में गहरी बात ... बहुत खूब ...

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  5. कम शब्दों में सारगर्भित रचना।

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  6. मन की भावुक अनुभूति
    वाह !!! बहुत खूब
    बधाई

    आग्रह है --
    भीतर ही भीतर -------

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  7. गागर में सागर .... बहुत गहरी रचना

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  8. bahut hee umdaa

    http://raaz-o-niyaaz.blogspot.com/2014/09/blog-post.html

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  9. बेहद सुन्दर भाव है। जीवन एक बहुत ही मार्मिक सच जिसे जानते तो सब हैं पर स्वीकार कौन करता है। स्वयं शून्य

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  10. बेहतरीन प्रस्तुति मधुजी अनिल

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