Thursday, December 3, 2015

उसे

खुश रहो आबाद रहो 
सदा कामना करुँगी 
तुम्हारी बददिमागी का 
सामना करुँगी ----


साज़िश कर जो चक्रव्यूह 
तुमने रचा ----उसे ---
अपने बुलंद इरादों से 
तोड़ दिया है ---


वो राह जो पहुँचती थी 
तुम तक --उसे मैंने 
कब का ----
छोड़ दिया है !
                 पद्मिनी टाइम्स में प्रकाशित मेरी एक रचना। 

10 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (04-12-2015) को "कौन से शब्द चाहियें" (चर्चा अंक- 2180) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. धन्यवाद शास्त्री जी ...

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  2. मनोबल बढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सर ...

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  3. अपनी सामर्थ्य का भान होते ही निर्णय आसान हो जाते हैं और उन पर अमल के लिये मन स्थिरता पा लेता है - सचेत रचना !

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  4. बिलकुल सही कहा आपने प्रतिभा जी ...भले ही उस निर्णय के क्रम में काफी कष्ट उठाना पड़ता है पर हाँ या ना का फैसला करना ही पड़ता है वो फैसला जो प्रत्यक्ष रूप से जिंदगी से जुड़ा हुआ हो --

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  5. डॉ निशा जी आपकी यह रचना बेहद सुन्दर व सजग है.....आप अपनी रचनाओं में एक लक्ष्य कि ओर इंगित करते हुए वर्णन करती है.....ऐसी ही रचनाएं अब आप शब्दनगरी पर भी प्रकाशित कर सकतीं हैं.....

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  6. डॉ निशा जी आपकी यह रचना बेहद सुन्दर व सजग है.....आप अपनी रचनाओं में एक लक्ष्य कि ओर इंगित करते हुए वर्णन करती है.....ऐसी ही रचनाएं अब आप शब्दनगरी पर भी प्रकाशित कर सकतीं हैं.....

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