पिताजी ने सिखलाया था कि .....गर ...
राह बदल लेना
सामने के नज़ारे ..
दिल को दहलाने लगे ..तो…?
आँखें मूंद लेना ...
मित्रता में अगर .....
समानता न हो
समभाव न हो
मैत्रीभाव न हो ..तो ..?
ऐसी मित्रता को छोड़ देना ..क्योंकि ..
मंजिल स्पष्ट है तो रास्ते मिल हीं जायेंगे
आँखें हैं तो नज़ारे भी दिख जायेंगे
जिंदगी रहेगी तो ...?
मित्र भी बन जायेंगे ....किंतु .....
खुद की नज़रों से गिरकर ..
कैसे जी पाओगी ?
इसीलिए ..निशा ......
जिन्दगी में हर फैसला
सोच -समझ कर करना
खुद की नज़रों में गिर जाओ
ऐसा काम कभी नहीं करना .....
सुन्दर भावपूर्ण कविता |आभार निशा जी |
ReplyDeletesundar bhav vyakti , badhai nisha ji
Deleteआपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
dhanyavad dilbag jee.....
Deleteलाख रुपये की सीख
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना ...आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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thanks to all.....
ReplyDeleteडॉ.निशा जी पिताजी के प्रति आपका आदर भाव कविता में प्रकट हो रहा है। हमेशा पिता का लगाव बेटी के प्रति ज्यादा और बेटी का पिता के प्रति रहता है। पिता का बेटी के साथ सलाह-मशवीरा करना और कहना कि मूल अर्थ में 'खुद की नजरों में उठ जाओ ऐसा काम करते रहना।' उत्कृष्ट।
ReplyDeleteतस्वीर से भी व्यक्ति के भाव प्रकट होते हैं। पिताजी में कानून, प्रेम, संवेदना, परिवार के प्रति जिम्मेदारी... का एहसास कुट-कुट भरा है।
thanks viajay jee...
Deleteअरे वाह! बहुत सुन्दर निशा जी!
ReplyDeleteजिन्दगी में हर फैसला
ReplyDeleteसोच -समझ कर करना
खुद की नज़रों में गिर जाओ
ऐसा काम कभी नहीं करना
बहुत सुन्दर....बेहतरीन प्रस्तुति निशा जी!!
पधारें बेटियाँ ...
बहुत सुन्दर सकारात्मक सीख!
ReplyDeleteबेहतरीन सीख देती रचना
ReplyDeleteपापा की अमूल्य सीख..
ReplyDeleteबिलकुल सच्ची बात.
ReplyDeleteखुद की नज़रों से गिरकर ..
ReplyDeleteकैसे जी पाओगी ....
वाह , बहुत लाजवाब सीख
thanks to all......
ReplyDeleteबेहतरीन सीख
ReplyDeleteदेवी सिद्धिदात्री माता -दिवस की वधाई !
ReplyDeleteअच्छी मोविश्लेषक रचना \ बहुत खूब !!
बढ़िया ...
ReplyDeleteSakaratmak soch,...
ReplyDeleteSeekh deti rachna
खुद की नज़रों में गिर जाओ
ReplyDeleteऐसा काम कभी नहीं करना ....
पिता कभी भी गलत हो ही नहीं
सही सीख
dhanyavad vibha jee ....
ReplyDeleteमंजिल स्पष्ट है तो रास्ते मिल हीं जायेंगे
ReplyDeleteआँखें हैं तो नज़ारे भी दिख जायेंगे
बहुत सुन्दर