'तुम' को बनाए रख कर अपने आप को मिटाना अत्यंत कोमल भाव। इसे संभाले और सजाएं रखना आवश्यक है पर बेदर्द दुनिया ऐसे भावों को मरोड देती है। निशा जी आपके भाव नारी के हैं पर शायद ही कोई पुरुष 'मैं' में ढल जाए। जिस दिन पुरुष मैं में ढलेगा वहां दिल्ली या अन्य जगहों में घटित अत्याचार (कली को मरोडने) की घटनाएं नहीं होंगी। आप मेरे ब्लॉग पर एक आलेख पढ सकती है 'हद हो गई' जिसमें इस पर थोडा विस्तार से लिखा है। ब्लॉग पर केवल लिंक है, वहां से आप मूल ई-पत्रिका में जाकर लेख पढ सकती है। drvtshinde.blogspot.com
बहुत सुन्दर प्रस्तुति! आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (10-04-2013) के "साहित्य खजाना" (चर्चा मंच-1210) पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है . सूचनार्थ...सादर!बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
'तुम' को बनाए रख कर अपने आप को मिटाना अत्यंत कोमल भाव। इसे संभाले और सजाएं रखना आवश्यक है पर बेदर्द दुनिया ऐसे भावों को मरोड देती है। निशा जी आपके भाव नारी के हैं पर शायद ही कोई पुरुष 'मैं' में ढल जाए। जिस दिन पुरुष मैं में ढलेगा वहां दिल्ली या अन्य जगहों में घटित अत्याचार (कली को मरोडने) की घटनाएं नहीं होंगी।
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पर एक आलेख पढ सकती है 'हद हो गई' जिसमें इस पर थोडा विस्तार से लिखा है। ब्लॉग पर केवल लिंक है, वहां से आप मूल ई-पत्रिका में जाकर लेख पढ सकती है।
drvtshinde.blogspot.com
ReplyDeleteभावपूर्ण सुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (10-04-2013) के "साहित्य खजाना" (चर्चा मंच-1210) पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
dhanyavad shashi jee .......
Deleteस्वयं को अर्पण कर देना अपने आप को भुला कर ... यही तो सच्चा प्रेम है ...
ReplyDeleteगहरी अनुभूति प्रेम की ...
बहुत ही भावपूर्ण शब्दों में ढाला है इस कविता को आभार.
ReplyDelete"जानिये: माइग्रेन के कारण और निवारण"
वाह, बहुत बढ़िया
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ReplyDeleteप्रगाढ़ अनुभूतियों की सुन्दर रचना .
th a n ks to al l . . . . .
ReplyDeleteप्यार की भाषा---नारी में सारी,सारी में नारी
ReplyDeleteऐसा ही क्यों होता है जब सब कुछ छुट जाता है तो याद आता है
ReplyDeleteछूटता तो कुछ भी नहीं है ...जो आँखों के सामने नहीं होता उसकी याद आती है ....सिंह साहब
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या बात
.सभी का आभार ......
ReplyDeleteसुन्दर रचना ...गहरी अनुभूति.!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना !! दाद वसूल पाइयेगा !!
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