Friday, March 28, 2014

ओ पलाश

चम-चम -चम चमकते हो 
अग्नि जैसे दहकते हो 
उमंग-उल्लास या फिर 
जो है उसमें संतुष्ट रहने की  चाह 
नहीं किसी से कोई आस 
क्या वजह है तेरी खुशियों की ?
                              बता दे मुझको ओ पलाश -----
मौसम-मस्ती और तन्हाई 
लिए साथ में खुशियाँ आईं 
सौंन्दर्यविहीन वसुंधरा पे 
भाव -विभोर हो जाते हो -----

पथभ्रष्ट  मुसाफिर को 
ये मूलमंत्र बतला देना 
जो दिया है उसको प्रकृति ने 
उसमें जीना उसे सिखा देना 
मेरे,उसके,सबके मन में------
                       ओ पलाश तुम छा जाना--
                        ओ पलाश तुम छा जाना----

14 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन सब 'ओके' है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. सुन्दर तादात्म्य और संवाद प्रकृति नटी संग

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  3. बहुत सुंदर बात
    सार्थक अभिव्यक्ति

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  4. धन्यवाद शास्त्री जी ...

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  5. ओ पलाश .. बहुत ही सुन्दर भावावियक्ति..

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  6. बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...

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  7. पलाश कि प्राकृति को बाखूबी उकेरा है रचना में ... बहुत सुन्दर ..

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  8. सुन्दर प्रस्तुति
    मेरे ब्लॉग पर आकर अपने सुझाव दे !

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  9. मन के दार्शनिक पष्ठभूमि में लिखी गई कविता बेहद अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।

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  10. Really we have so much to learn from nature:)

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