Monday, April 9, 2012

मुर्गा बोला (6)

मुर्गा बोला ........
कुकड़ू  कूँ
हो गई गलती अनजाने में
कृपाकर माफ़ कर दो तुम ..........
वादा करता हूँ मै तुमसे
जिन बातों से दिल दुखता है तेरा
वो बात नही दुहराऊंगा
माँ ,बहन या भाभी हो मेरी ...
किसी के बहकावे में नही आऊंगा .......
जब से तूने घर छोड़ा है
तब से घर में दीपक नही हँसता
रसोई और पूजाघर की ज्योति भी
तेरे बिन जैसे सो रही है .....
बिना तुम्हारे ऐसा लगता ............
घर की डेहरी रो रही है .........



कौन है अपना ????/
कौन पराया ????/
सबकी नीयत जान गया  हूँ
अहमियत क्या है तेरी मेरे जीवन में .........
इसे अच्छी तरह पहचान गया हूँ ......
छोटी सी इक भूल से मेरी
दर दर भटक रहा है चूजा मेरा बेचारा .....
मुर्गी रानी मान भी जाओ
तुम बिन मेरा कौन सहारा ????????







मुर्गी बोली .....
जानती हूँ  .....
एक का धेर्य दुसरे का गुस्सा
दाम्पत्य जीवन को मजबूत बनता है .....
पर मौन जब मुखरित होता है तो ???????
काबू में कहाँ रह पाता है ???///
कब तक ?बोलो...... कबतक ?
तुम्हारे अत्याचार को मै सहती ?
नदी बिना किनारे की बन .....
कब तक यूं ही बहती ??????
बेशक .....माँ बाप के श्रवण कुमार बनो ....
बहना के बनो प्यारे भैया ....
भाभी के देवर ......
क्यों भूल जाते हो क़ि....
हो तुम मेरे भी जेवर ......



अर्धांगनी हूँ तुम्हारी
कैसे रह सकते मुझसे दूर ?????
मेरी मांग के सितारे ...
तुम हो मेरे सिन्दूर .......



दुःख देनेवाले करके काम
कैसे बनोगे तुम मेरे राम ?????

चूजों को साथ लिए मै
दर दर कैसे भटकती हूँ .......
कैसे कहूँ उन बातों को
जिनको कह फटती है मेरी छाती ....
यादें मेरे घर क़ी दिन रात है सताती ....


तुमसे और चूजों से ही तो ????????
महकता था घर संसार हमारा ...
मुर्गे राजा !मुझको चाहिए ..
केवल और केवल साथ तुम्हारा ......

Sunday, March 18, 2012

मुर्गा बोला (भाग -५)

मुर्गा बोला -कुकड़ू कूं
आ नहीं पाया होली में
नाराज तुम होती हो क्यूँ ?


जानता हूँ .........
फागुनी बयार ने ...
भौरों के गुंजार ने ...
पलाश के दहकते श्रृगार ने ....
वसंत दूत की मीठी कूक ने ...
मेरे वियोग में ,दिल में उठी हूक ने ....
तुम्हे  जी भरतडपाया होगा ..........


पिछली होली की यादों ने
मेरे द्वारा किये गये वादों ने
तेरा दिल बहुत दुखाया होगा पर ........?
याद रखो जीवन में चाही गई कई इच्छाएं .......
नहीं हो पाती हैं पूरी
जीवनसाथी हो मेरी
समझो मेरी मज़बूरी .



इंतजार करो मिलन के
स्वर्णिम क्षणों का जब ....
करूंगा हर कमी क़ी भरपाई
उत्साह औ उमंग के रंग से
रंगेगा खुशियों भरा संसार हमारा
मुर्गी रानी मान भी जाओ
तुम बिन मेरा कौन सहारा ?






मुर्गी बोली .........
नाराज नही हूँ मै......
मेरे दुःख  को समझो यार
एक दूजे के गम को हर ले
इसे कहते हैं प्यार .......



फूलों पर मंडरा रही है
तितलियाँ हौले -हौले
कोयल ,मोर .पपीहा बोले
भेद प्रणय के सभी हैं खोले
मदनोत्सव (होली ) के रंगीन माहौल में
चैन नही यहाँ ......
विरहाग्नि से दग्ध उर से
आवाज आ रही .......
मोरे पिया तूं कहाँ ?



तो क्या हुआ ?
तुम बिन गुजरी मेरी होली ....
यादें थी पिछली होली क़ी
थी नही मै अकेली ......

विश्वास औ प्यार भरा साथ हो गर ...?
जीवनसाथी का तो ????????/
हर दिन होली और हर रात दिवाली होती है
तन- मन प्यार के रंग रंगे
यही  तो जीवन क़ी ज्योति है .....

जीवनसाथी का साथ है ऐसे जैसे
नदी औ किनारा
मुर्गे राजा ! मुझको चाहिए
केवल औ केवल साथ तुम्हारा .......




मुर्गे -मुर्गी के संवाद ने अगर आपको थोड़ी सी भी खुशियाँ दी हो तो
कृपया अपने विचार अवश्य लिखें .भले मेरे साथ न्याय न करें पर अपने
साथ अन्याय क्यों ???????///धन्यवाद गुप्त दोस्त ..

Monday, February 13, 2012

मुर्गा बोला (भाग-४)

ब्लौगर साथीओं आज  मुर्गा -मुर्गी के वियोग व प्रेम की व्यथा का आनंद लीजिये ........
मुर्गा बोला..........
कुकड़ू  कु .......
 मेरी हमसफर .....मेरी हमदम ......
कहाँ हो तुम?????????????......
मुद्दतें गुजर गईं 
तुम नहीं आईं.....
कैसे बताउं तेरे बिन ....
डंसती है ये तन्हाई .

आओगी .....तुम .....ये सोचकर ....
तन्हा यहीं  खड़ा हूँ ....
जिस मोड़ पे मुझे छोड़ गईं थीं ?
बेबस वहीं पड़ा हूँ ......

जिउं......? वो भी तुम बिन ...? नहीं .........
मेरे दिल को नही गवारा ........
मुर्गी रानी मान भी जाओ ....
तुम बिन मेरा कौन सहारा ?

मुर्गी बोली ......
मुद्दतें गुजर गईं 
तुम्हें  भूल नही पाई.......
वियोग की अग्नि को ...
दहका गई पुरवाई .

कैसे जिउं तुम बिन ?
तुम बिन कैसे मै गाऊ ?
पांव पड़ी जंजीर है मेरे ....
कैसे मिलने आऊं....?

भौरा  गुंजन करता था ......
कलियाँ खिलखिलाती थी ....
तितली बनकर  जब-जब मै ....
उपवन में लहराती थी .

हाय ! ये क्या हो गया .....?
कैसे हो गया .......?
फूल झड गये सारे!
उस निर्दय पतझड़ के आगे ......
लूट गईं बहारें......!

 नहीं रोक सकेंगे मुझको ......
करे लाख जतन जग सारा ....
मुर्गे राजा ....मुझको चाहिए 
केवल औ केवल साथ तुम्हारा ....




Sunday, January 8, 2012

मुर्गा बोला -(भाग- 3)

मुर्गा बोला कुकड़ू कू.........
क्या कमाता हूँ ?कहाँ जाता हूँ ?
पूछनेवाली कौन होती है तूँ ?
बाती जल जाती है ....
.रह जाता है सिर्फ दीया........
खुद से पूछकर देखो ?
तेरी औकात है क्या ?

अपनी मर्जी का मालिक हूँ ....
हूँ नही गुलाम तुम्हारा ......
कभी नहीं सुन पाओगी मुझसे ......
तुम बिन मेरा कौन सहारा ?


मुर्गी बोली ........
मै कौन हूँ ?
औकात है मेरी क्या ?
मै हूँ एक बाती ....
तुम एक निर्दय दीया ......
सहधर्मिणी हूँ तुम्हारी
अपनी औकात मै बतलाउंगी
भटक गए हो रास्ते से .....
सही राह मै दिखलाउंगी  ....
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरंक्षण अधिनियम २००५ औ
४९८अ का प्रभाव तुम पर आज्माउन्गी ???????????????

निर्दय होकर मै भी तुमको ..................
जेल की चक्की पिस्वाउंगी
कष्ट में तुम्हे देखकर भी
नहीं पिघलेगा दिल मेरा बेचारा
भूले से भी नही सोचना
कहूंगी तुमसे मै ........

मुर्गे राजा......मुझको चाहिए .....
केवल औ केवल साथ तुम्हारा .......







Tuesday, November 22, 2011

मुर्गा बोला(भाग-२)


मुर्गा बोला -कुकडूँ कूँ-----
दुःखी ना हो
खुश हो जाओ तुम
कमी न रहे कुछ जीवन में
दौलत का अंबार लगाऊँगा
भारत की कौन कहे स्वीस बैंक में
खाता खुलवाऊँगा
तेरे नाम से चाँद पर प्लाट
बुक करवाऊँगा
दौलत की दुनियाँ में लिखवाऊँगा
स्वर्णाक्षरों में नाम तुम्हारा
मुर्गी रानी----मान भी जाओ
तुम बिन मेरा कौन सहारा ?


मुर्गी बोली-----
मेरे जीवन धन तुम हो
मेरे प्रियतम तुम हो
भूलो मत----
धन से ,नक्काशीदार पलंग खरीद सकते हैं
नींद नहीं
छप्पन पकवान खरीद सकते हैं
भूख नहीं
सपने खरीद सकते हैं
स्वास्थ्य नहीं
नही चाहती मैं कि
धन के नशे में कदम तुम्हारा बहके
इतना ही हो दौलत मुझको
जिससे हमारे जीवन की बगिया महके
खुशी हो या गम हो
साथ हो एक दूजे का
प्यारे-प्यारे चूजे का
नहीं चाहिये प्लाट चाँद पर
न हीं दौलत की दुनियाँ में
लिखवाना है नाम हमारा
मुर्गे राजा मुझको चाहिये
केवल औ केवल साथ तुम्हारा।

Monday, October 31, 2011

मुर्गा बोला.....(भाग १)


मुर्गा बोला....
कुकड़ू कुं
झूठ नही सच मानो तुम 
फँसा हुआ था काम में नही मिली 
मुझे छुट्टी .......
छोटी सी इस बात पे 
नही करो तुम कुट्टी .....
गाँव की क्या बात मै तुमको ......
स्विट्जरलैंड ले जाऊंगा ......
दुनिया की हर खुबसूरत जगहों  की 
सैर करवाऊंगा .....
दिखलाऊंगा दिल खोलकर 
मनभावन हसीन नज़ारा......
मुर्गी रानी मान भी जाओ 
तुम बिन मेरा कौन सहारा ?


मुर्गी बोली ..........
ऊँची -ऊँची बातों से दिल मेरा बहलाते हो .....
मीठी -मीठी बातें कर
मुझे चने की झाड़ पे चढाते हो ?
सच क्या है ?झूठ क्या है ?
अंतर करना मैं जानती हूँ .......
लाख छुपाओ मुझसे खुद को पर ! मै ...तुम्हें...........?
अच्छी तरह पहचानती हूँ .....
जीवन की  हर उलझन से मुक्त होकर जहाँ ..........
गीत गए बंजारा ..........
छोटे से  प्यारे से गाँव में 
जाने को तरसरहा है दिल मेरा बेचारा ...

उस प्यारे से गाँव में ....
पीपल की ठंडी छांह में 
जहाँ सखियों की टोली हो .....
कोयल की मीठी बोली हो .....
बारिश का पानी औ कागज की कश्ती हो .....
जहाँ सखियों करती मनमानी हो ......
पद सत्ता औ दिखावे की चाह से ....
दुनियां बेमानी हो .....
नही जाना स्विट्जरलैंड मुझको 
न हीं देखना कोई हसीन नज़ारा ....
मुर्गे राजा मुझको चाहिए 
केवल औ केवल साथ तुम्हारा........


Thursday, October 20, 2011

मुर्गा बोला ....


मुर्गा बोला ....
कुकड़ू कु 
हुआ सबेरा जागो तुम 
दुनियां  जागी 
मुनियाँ जागी 
जाग रहा है 
घर सारा 
मुर्गी रानी 
मान भी जाओ 
तुम बिन मेरा 
कौन सहारा ?




मुर्गी बोली ........

खुद को दयनीय  बताकर 
दिल मेरा हर लेते हो ?
चाँद सितारे मेरे दामन में भरोगे .......
कहकर मुझे सब्जबाग दिखलाते हो ..........
छल करने की ये अनोखी अदा 
किस छलिये से सीखी है ?
देखी होंगी बहुत सारी पर ........
मुझ सी नही देखी होगी 
नही चाहिये चाँद सितारे 
नही महल न हरकारा 
मुर्गे राजा मुझको चाहिए 
केवल औ केवल साथ तुम्हारा .