Monday, April 22, 2013

ओ दिमाग वाले



जहाँ जोड़ना चाहिए 
वहाँ घटा देती हूँ 
जहाँ घटाना चाहिए 
वहाँ जोड़ देती हूँ 

तुम  कहते हो  ..मै ...हमेशा 
कैलकुलेशन में लगी रहती हूँ 

ऊपर वाले की माया है ये 
ये तो वही जाने ...

मेरी किसी बात को 
कभी ना तुम  माने 

ओ दिमाग वाले ...

दिमाग के सारे काम 
दिल से निबटाती हूँ ....
इसीलिए हमेशा .
.कैलकुलेशन में गड़बड़ा जाती हूँ ....

दिल और दिमाग से 
विश्वास के बलबूते ..मैं  ..
एक हीं काम करती हूँ 
जितना फैल सकती हूँ 
फैल जाती हूँ ....

अगले हीं पल पुनः  
सिमट जाती हूँ ....

इस क्रम में 
जमीं मेरी राहों में 
आसमां मेरी बाँहों में और 
खुशियाँ निगाहों में होती है ..

जमीं ,आसमां और खुशियों के बीच ....तुम्हें   ...ये 
कैलकुलेशन कहाँ दिख जाता है ? 
कल भी  मुझे मालुम न था 
न आज  कुछ पता है ......

31 comments:

  1. दिल और दिमाग से
    विश्वास के बलबूते ..मैं ..
    एक हीं काम करती हूँ
    जितना फैल सकती हूँ
    फैल जाती हूँ .....

    ....बहुत सुन्दर और सटीक सोच और उसकी सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
    --
    शस्य श्यामला धरा बनाओ।
    भूमि में पौधे उपजाओ!
    अपनी प्यारी धरा बचाओ!
    --
    पृथ्वी दिवस की बधाई हो...!

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  3. जीवन में इतना जोड़तोड़ कहां चलता।

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    1. bahut mushkil hai ......jod tod wala mamla .....par kvchh log kar lete hain ....apne samajh me to nahi aata ...

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  4. beshak ak behatareen prastuti, दिमाग के सारे काम
    दिल से निबटाती हूँ ....
    इसीलिए हमेशा .
    .कैलकुलेशन में गड़बड़ा जाती हूँ ....

    दिल और दिमाग से
    विश्वास के बलबूते ..मैं ..
    एक हीं काम करती हूँ
    जितना फैल सकती हूँ
    फैल जाती हूँ ....nice thought

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  5. बहुत ही सुंदर रचना ...

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  6. सुंदर अनुभूति सार्थक सोच

    सुंदर रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

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  7. दिमाग के सारे काम
    दिल से निबटाती हूँ ....


    फिर गड़बड़ की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती.

    सुन्दर सचना.

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  8. डॉ.निशा जी आपकी कविता इंसान होने का एहसास दिलाती है। हमेशा पाया जाता है कि आदमी अपने रिश्तों का मोल-तोल, लेन-देन करता है। पर जिंदगी कोई वस्तु नहीं कि जिसका मूल्य पैसों और कॅलक्युलेशन में आंका जाए। दिल सर्वोपरि है। जिस पर कविता में आपने बडी ईमानदारी से प्रकाश डाला है। कॅलक्युलेशन में गडबड हो कोई फर्क नहीं पडता पर फैलना जरूरी है। आपकी कविता के भीतर का 'फैलाव'विशाल हृदय का परिचय देता है।

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    1. thank...u..vijay jjee .....aap bahut accha vishleshan karte hain ......thanks again ....

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  9. dil ka faisala hamesha sahi hi hota hai, tatkal bhale hi aisa na prateet ho.

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  10. इस क्रम में
    जमीं मेरी राहों में
    आसमां मेरी बाँहों में और
    खुशियाँ निगाहों में होती है ..

    आपने माँ बहन बेटी या कहूँ नारी की गरिमा को खुबसूरत शब्द दे दिए बधाई ..

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  11. इस क्रम में
    जमीं मेरी राहों में
    आसमां मेरी बाँहों में और
    खुशियाँ निगाहों में होती है
    बहुत खूब कहा आपने ...

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  12. दिल और दिमाग से
    विश्वास के बलबूते ..मैं ..
    एक हीं काम करती हूँ
    जितना फैल सकती हूँ
    फैल जाती हूँ .....
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  13. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ...सादर।

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  14. जीवन में जोड़ घटाव चलता रहता है .............बहुत सुन्दर रचना

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  15. जमीं ,आसमां और खुशियों के बीच ....तुम्हें ...ये
    कैलकुलेशन कहाँ दिख जाता है ?
    कल भी मुझे मालुम न था
    न आज कुछ पता है ......
    वाह वाह तारीफ़ के लिये हर शब्द कम लग रहा है।

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  16. दिमाग वाले के पास दिल है क्या???

    बहुत बढ़िया भाव हैं निशा जी...

    सादर
    अनु

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    1. hai n aakhirkar jeene ke liye blood to wahi deta hai ....dhanyavad anu jee ...

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  17. sabdo aur bhavnao ke sangam me tairta carculation

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  18. sabdo aur bhavnao ke sangam me tairta carculation

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  19. इस क्रम में
    जमीं मेरी राहों में
    आसमां मेरी बाँहों में और
    खुशियाँ निगाहों में होती है ..
    आदरणीया निशा जी जिन्दगी एक पहेली जिन्दगी एक उलझन जिन्दगी एक सूझ सब कुछ तो है ...जिन्दगी के गणित से रूबरू कराती अच्छी रचना
    भ्रमर ५

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  20. बहुत बढ़िया रचना

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