Friday, April 5, 2013

होते हीं हैं ......

रात में सहर
फूल में काँटें
मोहब्बत में मुलाकातें ....


दिल में दर्द
आँखों में सपने
परायों में अपने .....


समुन्दर में लहरें
बाग़ में भँवरे
ज़ख्म  बड़े गहरे ...


स्वार्थ में छल
जीत में हर्ष
जीवन में संघर्ष .....होते हीं हैं .....

20 comments:

  1. बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
    --
    आपकी पोस्ट की चर्चा आज शनिवार (06-04-2013) के चर्चा मंच पर भी है!
    सूचनार्थ...सादर!

    ReplyDelete
  2. बहुत गहरी और सत्य कहती रचना .....
    बहुत अच्छी लगी ...

    ReplyDelete
  3. बहुत ही बढ़िया उत्कृष्ट प्रस्तुति,आभार.

    ReplyDelete
  4. आनंदमयी और सार्थक जोड़

    ReplyDelete
  5. सच कहा है ... बिलकुल होते हैं ...
    विविध है दुनिया इसी लिए तो कहते हैं ..

    ReplyDelete
  6. स्वार्थ में छल
    जीत में हर्ष
    जीवन में संघर्ष .....होते हीं हैं .....
    jeevan ka sach
    sarthak rachna

    ReplyDelete
  7. स्वार्थ में छल
    जीत में हर्ष
    जीवन में संघर्ष .....होते हीं हैं .....
    jeevan ka sach
    sarthak rachna

    ReplyDelete
  8. शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया .आपके टिपियाने का बेबसी का यथास्थितिवाद से बंद रास्तों का सुन्दर बयान है यह रचना .स्वीकृति का जीवन को जीने की प्रेरणा है यह रचना .जो है सो है ,अच्छा है जो भी है .

    ReplyDelete
  9. स्वार्थ में छल
    जीत में हर्ष
    जीवन में संघर्ष .....होते हीं हैं ...

    जीवन की सच्चाई को बयां करते .....

    ReplyDelete
  10. सुंदर हाइकू ।

    ReplyDelete
  11. डॉ. निशा जी छोटी पंक्तियां पर गीत और लय से भरी हुई। लगता है मानो कोई बांसुरी बजा रहा हो और उसको सुन आत्मा भीग रही हो।
    drvtshinde.blogspot.com

    ReplyDelete
    Replies
    1. dhanyvad vijay jee ..itni acchhi tippani ke liye .......aise me aisa lagta hai ki likhna sarthak hua ....

      Delete
  12. बिल्कुल आपके लेखन में ताकत है कोई शक नहीं। और आपको बता दूं जो दिल से लिखता बोलता है दुनिया को पसंद आता ही है।

    ReplyDelete