Tuesday, April 9, 2013

सब कुछ


सोचा न था जो सपनों में

 वो आज सामने आया है 

बनकर यादें ...कुछ भूली सी

 इक याद दिलाने आया है      

  पाकर तुमको ..तेरे अपनेपन को     

    ह्रदय   से लगाए बैठी हूँ ..    

    सब कुछ पाया ..सब कुछ खोया        

  तुम-तुम हीं रहे ..मैं -मैं न रही ...

16 comments:

  1. 'तुम' को बनाए रख कर अपने आप को मिटाना अत्यंत कोमल भाव। इसे संभाले और सजाएं रखना आवश्यक है पर बेदर्द दुनिया ऐसे भावों को मरोड देती है। निशा जी आपके भाव नारी के हैं पर शायद ही कोई पुरुष 'मैं' में ढल जाए। जिस दिन पुरुष मैं में ढलेगा वहां दिल्ली या अन्य जगहों में घटित अत्याचार (कली को मरोडने) की घटनाएं नहीं होंगी।
    आप मेरे ब्लॉग पर एक आलेख पढ सकती है 'हद हो गई' जिसमें इस पर थोडा विस्तार से लिखा है। ब्लॉग पर केवल लिंक है, वहां से आप मूल ई-पत्रिका में जाकर लेख पढ सकती है।
    drvtshinde.blogspot.com

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  2. भावपूर्ण सुंदर रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (10-04-2013) के "साहित्य खजाना" (चर्चा मंच-1210) पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
    सूचनार्थ...सादर!बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  4. स्वयं को अर्पण कर देना अपने आप को भुला कर ... यही तो सच्चा प्रेम है ...
    गहरी अनुभूति प्रेम की ...

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  5. बहुत ही भावपूर्ण शब्दों में ढाला है इस कविता को आभार.
    "जानिये: माइग्रेन के कारण और निवारण"

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  6. वाह, बहुत बढ़िया

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  7. प्रगाढ़ अनुभूतियों की सुन्दर रचना .

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  8. प्यार की भाषा---नारी में सारी,सारी में नारी

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  9. ऐसा ही क्यों होता है जब सब कुछ छुट जाता है तो याद आता है

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    1. छूटता तो कुछ भी नहीं है ...जो आँखों के सामने नहीं होता उसकी याद आती है ....सिंह साहब

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  10. .सभी का आभार ......

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  11. सुन्दर रचना ...गहरी अनुभूति.!!!

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  12. बहुत ही सुंदर रचना !! दाद वसूल पाइयेगा !!

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