
Friday, November 29, 2013
Saturday, November 2, 2013
फिर भी------

घिरते जंग में जो होते-------- सच्चे वीर
चाहे हो घनघोर निराशा
जीतने की भी नहीं हो आशा---
फिर भी------
मान लेना मेरा कहना
दीपक तुम जलते हीं रहना ----
दीपक -----तुम-----जलते-----हीं ----रहना-----
आप सभी को दीपावली कि हार्दिक शुभकामना ----
दीपावली के दीपक से आपको शक्ति मिले ,साहस मिले ,हिम्मत और हौसला मिले।
वयस्तता कि वजह से आप सभी के ब्लॉग पर नहीं आ सकूँगी जैसे हीं मौका मिलेगा आउँगी। धन्यवाद।
Friday, October 18, 2013
Sunday, September 29, 2013
कहा चाँद ने रजनी से ,,,,,,
कहा चाँद ने रजनी से
तुम्हारी खातिर मैं .…
चाँदनी तो क्या,…
आसमान भी छोड़ दूँगा
चैन मिले तुम्हें हमेशा इसलिए
मैं अकेला ही जी लूँगा
हर गम हँसते-हँसते पी लूँगा
मैं अकेला ही जी लूँगा
हर गम हँसते-हँसते पी लूँगा
प्यार किया है तो निभाना आता है,….
तुम्हारे लिए मिट जाना आता है,…
सुनो मेरी प्राण-प्रिया
तेरे बिन धड़कता नहीं मोरा जीया,…….
तुम मेरी जान हो ,…इसलिए विरह में तेरे
अपनी जान नहीं दूंगा
इस बात से अनजान हो
करूँगा नहीं कभी शिकवा ,…
खुद से खुद को छिपा कर
दुनियाँ को बता दूँगा ,…….
प्यार होता है क्या
बिना बोले जता दूँगा ,…….
Monday, September 23, 2013
Wednesday, September 4, 2013
चाणक्य बनकर चन्द्रगुप्त को पहचानिए

माँ-बाप ,भाई-बहन ,सगे संबंधियों के साथ
लंगोटिया यार रहते थे----
एक समय ऐसा भी आया
जब हमारे दिलों में किरायेदार रहने लगे
जो समय-समय पर मनवांछित किराया चुकाते हैं
मौका मिलने पर नए बसेरे की खोज कर
फुर्र से उड़ जाते हैं(संबंधों का विकृत रूप )
भले हीं उनकी याद में हमारा दिल
फूट-फूट के रोता है पर
उन किरायेदार पर उसका असर
भला कहाँ हो पता है ?
वो तो नए सपने ,नई महत्वाकांक्षा के साथ
एक बार फिर से नया बसेरा बसाता है
और जिन्दगी भर बसेरा बसाने की
कोशिश में हीं लगा रह जाता है
ऐसे लोगों का बसेरा क्या ? कभी बस पाता है ? (दिग्भर्मित रहते हैं जिन्दगी भर )
ऐसे में क्या करें ? किसे दोष दें ?
मकान को घर बनानेवाली माँ का - ?(माँ प्रथम शिक्षक कहलाती है )
परीक्षा लेनेवाले परीक्षक का - ? ( प्रणाली में उपस्थित सारे लोग एवम परिस्थितियाँ )
या फिर देश के भावी कर्णधार को तैयार करनेवाले शिक्षक का - ?
(शिक्षक विद्यार्थियों की दूसरी माँ कहलाते हैं और बच्चे दूसरी माँओं का कहना ज्यादा मानते हैं )
जो भावी कर्णधार को संवेदनशील इंसान बनाने के बजाय ----
राक्षसी प्रवृति वाले लोभी इंसान बना देते हैं और-----
समय आने पर --
अपनी आवशयकताओं की पूर्ति के लिए उनके आगे गिडगिडाते हैं
सोचिये -------
राष्ट्र का निर्माण करनेवाली माएँ
अपनी आवशयकता की पूर्ति के लिए गिडगिडाएगी ---तो ?
राष्ट्र की आत्मा भला चैन से कैसे रह पाएगी
इसीलिए … हे माएँ ( हे शिक्षक ) ----
अभी भी समय है
चाणक्य बनकर चन्द्रगुप्त को पहचानिए
शिक्षक का चोला उतारकर
एक बार फिर से गुरु जी बन जाइये
अपने विद्यार्थियों को डॉक्टर ,इंजीनियर , नेता और शिक्षक
बनाने के स्थान पर ( पद के मद में चूर हो जाते हैं लोग )
संवेदनाओं से भरपूर इंसान बनाइये
तभी राष्ट्र की माँ -बहन और बेटी भी
सुरक्षित हो अपनी भूमिका निभाएगी और --
राष्ट्र की आत्मा भी चैन से रह पायेगी
आप सभी को शिक्षक दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं
Sunday, August 25, 2013
Subscribe to:
Posts (Atom)