Sunday, June 17, 2012

लहरें और चट्टान

ब्लागर साथियों आइए  आज  आपको मै अपनी नई कल्पना से मिलवाती हूँ ......मुर्गा पुराण से मुक्ति
दिलवाती हूँ .....बताइएगा  कैसी लगी मेरी नई कल्पना एवम रचना .......




नदी की लहरों और चट्टान में
बहुत अच्छी बनती थी .....
बात-बेबात बिना वजह ठनती थी
शायद ये लगाव का ही एक रूप था
लहरें खिलखिलाती थी ,
इतराती -इठलाती थी ...
मालूम नही था चट्टान को
ये उसकी आदत थी ....



अचानक चट्टान के मन में
आ गया अहंकार ....
अहम् ब्रह्म अस्मि के मद में आकर
करती रही  लहरों का तिरस्कार
अपनी धुन में मस्त लहरों को
ये बात समझ में नहीं आई
एक दिन ....जब वो चट्टान के पास आकर खिलखिलाई .
चट्टान ने उसको अपनी आँखें दिखलाई औ ...
निर्दई  भाव से चिल्लाई
राह की तेरे बाधाओं को दूर करती हूँ ....
तुझे क्या पता कि  खुश रहने के लिए मै तेरे
क्या -क्या सहन करती हूँ ???????
सुनकर उसकी बातें
लहरों का दिल टूट गया
जिसे सच्चा साथी समझती थी ?????
उसका साथ उसी पल से छूट गया .............


आज भी उसके जीवन में ....
सच्चे साथी की कमी है
सच्चे साथी की कमी से
उसकी आँखों में नमी है......




सच तो यही है कि ....
सच्चा साथी मिलना किस्मत की बात होती है
उसके अभाव में ही शायद ......
निशा शबनम के आंसू रोती है ...
कोयल  कुहूकती है
पपीहा पीऊ -पीऊ पुकारता है
मोर नाचते समय भी रोता है ........



ऐ ...मन ........दु:खी मत हो ...
ऐसा   बहुतों के साथ होता है .....





छोड़ दोस्ती चट्टान की
लहरें अभी भी खिलखिलाती है ...
चट्टान जहाँ खड़ी थी
वहीं खड़ी है ....
लहरें अनवरत आगे बढती जाती है ...
आगे बढती जाती है .....