Friday, August 15, 2014

यादें तेरी गलियाँ

यादें तेरी गलियाँ
जब,जबरन मानस पे  छाती है
उखड़ा-उखड़ा दिल रहता है
आँखें छलक जाती है,,,,,,,

अपनों का नेह
वो निश्छल स्नेह
वो ममता की छाया
किसने चुराया ?


छोटी-छोटी बातें हैं
रहस्य है गम्भीर
हँसकर जिसने इनको झेला
उसे कहते हैं वीर,,,,,,,



विचित्रताओं की दुनिया  है
अपनों में  अपना है कौन ?
हर  पल दिल उन्हें ढूँढता
प्रकृति भी है मौन,,,,,,