Friday, November 29, 2013

..पर ...

अश्कों के समंदर में 
यादों की परियाँ तैरती हैं 
बढ़ी जा रही जीवन पथ पे ...पर ...
बाबूजी.... आपकी कमी बहुत खलती है .

Saturday, November 2, 2013

फिर भी------

अमावस कि निशा ने कहा ---हो अधीर 
घिरते जंग में जो होते-------- सच्चे वीर 

चाहे हो घनघोर निराशा 
जीतने  की  भी नहीं हो आशा---

फिर भी------

मान लेना मेरा कहना 
दीपक तुम जलते हीं रहना ----

दीपक -----तुम-----जलते-----हीं ----रहना-----

आप सभी को दीपावली कि हार्दिक शुभकामना ----

दीपावली के दीपक से आपको शक्ति मिले ,साहस मिले ,हिम्मत और हौसला मिले। 
                   
                                     वयस्तता कि वजह से आप सभी के ब्लॉग पर नहीं आ सकूँगी जैसे हीं मौका मिलेगा  आउँगी।   धन्यवाद।




Friday, October 18, 2013

गोरी तेरा रूप जैसे

गोरी तेरा रूप जैसे 
सुबह-सुबह की धूप
तुम्हारी ये  चंचल शोखियाँ 
दिल पे गिराती बिजलियाँ ....


तुम्हारी हँसी की खनक 
तुम्हारा मनमोहक जोश 
दिल मेरा फिसल गया 
किसे दूँ मै  दोष ?

Sunday, September 29, 2013

कहा चाँद ने रजनी से ,,,,,,

कहा चाँद ने रजनी से 
तुम्हारी खातिर मैं  .…
चाँदनी तो क्या,…
आसमान भी  छोड़ दूँगा 
चैन मिले तुम्हें हमेशा इसलिए
 मैं अकेला ही जी लूँगा
 हर गम हँसते-हँसते पी लूँगा 
प्यार किया है  तो निभाना आता है,…. 
तुम्हारे  लिए मिट जाना आता है,…
सुनो मेरी प्राण-प्रिया 
तेरे  बिन धड़कता नहीं मोरा  जीया,……. 
 तुम मेरी जान हो ,…इसलिए विरह में तेरे 
अपनी जान नहीं दूंगा 
 इस बात से अनजान हो 
 करूँगा नहीं कभी  शिकवा ,…
खुद से खुद को छिपा कर 
दुनियाँ को बता दूँगा ,……. 
प्यार होता है क्या 
बिना बोले जता दूँगा ,……. 






Monday, September 23, 2013

मृगतृष्णा के जाल में फँसकर

चंद सिक्कों की खातिर 
रिश्तों को दाँव पर लगा देते हैं लोग 
हँसती हुई आँखों को आँसू देकर 
पता नहीं कैसे जी लेते हैं लोग.

क्षणिक सुख की खातिर 
भविष्य को अंधकारमय बना देते हैं लोग 
मृगतृष्णा के जाल में फँसकर 
नेह को नरक बना देते हैं लोग.… 

Wednesday, September 4, 2013

चाणक्य बनकर चन्द्रगुप्त को पहचानिए

एक समय ऐसा था जब हमारे दिलों में 
माँ-बाप ,भाई-बहन ,सगे संबंधियों के साथ                           
लंगोटिया यार रहते थे----

एक समय ऐसा भी आया 
जब हमारे दिलों में किरायेदार रहने लगे 
जो समय-समय पर मनवांछित किराया चुकाते हैं 
मौका मिलने पर नए बसेरे की खोज कर 
फुर्र से उड़ जाते हैं(संबंधों का विकृत रूप )

भले हीं उनकी याद में हमारा दिल 
फूट-फूट के रोता है पर 
उन किरायेदार पर उसका असर 
भला कहाँ हो पता है ? 



वो तो नए सपने ,नई  महत्वाकांक्षा के साथ 
एक बार फिर से नया बसेरा बसाता है 
और जिन्दगी भर बसेरा बसाने की 
कोशिश में हीं लगा रह जाता है 

ऐसे लोगों का बसेरा क्या ? कभी बस पाता  है ? (दिग्भर्मित रहते हैं जिन्दगी भर )



ऐसे में क्या करें ? किसे दोष दें ?

मकान को घर बनानेवाली माँ का - ?(माँ प्रथम शिक्षक कहलाती है )

परीक्षा लेनेवाले परीक्षक का - ? ( प्रणाली में उपस्थित सारे लोग एवम परिस्थितियाँ )

या फिर देश के भावी कर्णधार को तैयार करनेवाले शिक्षक का - ? 

(शिक्षक विद्यार्थियों की दूसरी माँ कहलाते हैं  और बच्चे दूसरी माँओं का कहना  ज्यादा मानते हैं )


जो भावी कर्णधार को संवेदनशील इंसान बनाने के बजाय ----
राक्षसी प्रवृति वाले लोभी इंसान बना देते हैं और-----
समय आने पर --

अपनी आवशयकताओं की पूर्ति के लिए उनके आगे गिडगिडाते हैं 

सोचिये -------

               राष्ट्र का निर्माण करनेवाली माएँ 

अपनी आवशयकता की पूर्ति के लिए गिडगिडाएगी ---तो  ?

राष्ट्र की आत्मा भला चैन से कैसे रह पाएगी 

इसीलिए … हे माएँ ( हे शिक्षक ) ----

अभी भी समय है 
चाणक्य बनकर चन्द्रगुप्त को पहचानिए 
शिक्षक का चोला  उतारकर 
एक बार फिर से गुरु जी बन जाइये 

अपने विद्यार्थियों  को डॉक्टर ,इंजीनियर , नेता और शिक्षक
 बनाने के स्थान पर  ( पद के मद में चूर हो जाते हैं लोग )
संवेदनाओं से भरपूर इंसान बनाइये 
तभी राष्ट्र की माँ -बहन और बेटी भी 
सुरक्षित हो अपनी भूमिका निभाएगी और --
राष्ट्र की आत्मा भी चैन से रह पायेगी 


आप सभी को शिक्षक दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं 






Sunday, August 25, 2013

न जाने क्यों ?

पता नहीं क्या बात थी 
वो हमारी पहली और अंतिम मुलाकात थी 
हम कुछ वक्त एक दूसरे के साथ रहे 
कुछ उनकी सुनी
कुछ अपनी सुनाई 
बिछुड़ते वक्त वो थीं -----एक तरफ खड़ी 
अचानक मेरे गले से आ लगीं,…  फिर ----
न जाने क्यों ?
उनकी आँखें छलक पड़ीं 
बरसों बाद कोई औरत मुझे 
मेरी माँ जैसी लगीं 
न जाने क्यों ?

Friday, August 23, 2013

सुमित संग रूपम

माँ का आँचल कितना प्यारा…    स्वर्गीय शांति सिन्हा



दिल में दर्द,होंठों पे मुस्कान ,बिटिया में बसती  है पापा की जान-दामाद जी -इसका रखना ध्यान -पापा -
                                                                                  रणविजय कुमार



                                       



                        छूं लूँ आसमान नन्हीं परी -रूपम







निशा  मौसी का हाथ  -प्यारा सा साथ       







                                            एक डाली के   कई फूल-नानी का गाँव परियों का जहाँ …अभिनव,मनीषा मौसी ,सुनील मामा ,नानी, भावना , स्वर्गीय विमल किशोरी -बड़ी मौसी,अभिषेक आशीष।








                  कितना प्यारा अतीत हमारा -नानाजी ,मम्मी और मौसी,मौसाजी  का साथ -बड़ा था न्यारा







                        रिश्तों का रूप बड़ा अनोखा-मम्मी की गोद से मैंने देखा-राहुल रौशन









                                                                                   दिल में  मची खलबली



                                                  छोड़ हमारा प्यारा सा,सुन्दर सा ,छोटा सा प्राकृतिक घोंसला



                                                                              प्यारी मौसी पी -संग चली












प्यारा सा वो आँगन जहाँ अपनापन रहता था-नानाजी ,नानीजी ,पापा ,मम्मी,मौसी एवम भाई-बहनों का साथ                                                                                     - स्वर्ग सा बसेरा








                                     रखिया बंधा ले भैया सावन आला -संकेत की पहली राखी








                                 मान लेना मम्मी का कहना -प्यारी बहना मिलती रहना -रूपम प्रिया और स्वाति प्रिया










   सुखमय पल --ख़ुशी ,स्वाति,मनीषा ,राहुल, रुपम,ईशा  और बड़े दामाद गौतम जी -रूपम ससुराल चली अब
ईशा की करनी  है तैयारी। चिंता मत करो राहुल आएगी तेरी भी अभी बारी----








 
















                                           लाडों में पली ,नाज़ों से पली ,प्यारी बिटिया ससुराल चली












                             दो पथिक मिले ,एक राह चले ,दो सपनों ने ली अंगड़ाई -सुमित संग रूपम






















लिए नयनों में सुनहरे सपने -पहुंची पी के घर अपने 

              
समय-समय पर भेजना बहना अपना सन्देश 
यही कामना कर रहा है राहुल संग पुष्पेश 










खुश रहना तुम घर में अपने स्वर्ग उसे बनाना 

                                                         
         

                                           हम सबकी तहेदिल से यही है मनोकामना



                                                                     एक डाली के हैं हम फूल

                                                             







                                                  संबंधों की जमीं पर खुशियों का जहाँ हो  -जेठ और जेठानी
                                                  चाँद -तारों से भरा एक प्यारा सा आसमान हो
                                                      अमित आनंद से भरा रहे जीवन
                                                         न हो कोई कमी
























                                    भाव -विह्वल हो दिल बरसा  
आँखों में है नमी        -- -सासू माँ और ससुर जी


 माँ तो नहीं बन सकती पर-----

माँ -सी (मौसी) हूँ तेरी 

खुशियाँ सहचरी बने 
दुआ है मेरी 




                                                    जैसे अँगूठी में धातु और नगीने की
                                                                  जोड़ी होती अनुपम
                                                                 वैसे हीं जुडी रहे सुमित संग रूपम











                                                                   बँधे रहे अटूट बंधन में
                                                                      कम न हो कशिश
                                                                          अमर रहे सुहाग तुम्हारा
                                                                                    देती यही शुभाशीष





Wednesday, July 24, 2013

यादों के फूल

जहाँ अपनापन रहता था कभी … 
वहाँ सूनापन बसने लगा है                                                       
वसंत के डाल पे हो सवार … 
पतझड़ कमर कसने लगा है …. 

सूना आँगन सूनी गली …. 
सूना हो गया मन … 
प्रियजन के बिछोह से  …
तरसे दोनों नयन … 

एक वक्त वो  था जब … 
 काँटे भी नहीं चुभते थे 
एक वक्त ऐसा भी आया 
जब फूलों ने लहुलहान किया …. 

घर (मायका)  के  कोने -कोने से 
बही प्रेम की पुरवाई …. 
बिछड़ गए जो जीवन-पथ पर 
उनपर यादों के फूल चढ़ा आई …


Tuesday, July 2, 2013

प्रशासक सभी बहरे हैं .....

पिछले साल १ ० --१ २  जून को लौटी थी केदारनाथ से ....
केदारनाथ कभी जा हीं नहीं सकती मैं ......मैं हमेशा यही सोचा करती थी 
पर अचानक पता नहीं कैसे चली गई ....किसी का साथ मिल गया या भगवान् की मर्जी कुछ कह नहीं सकती पर ..वहाँ की अव्यवस्था और खतरनाक रास्ते को देख मैंने खुद को अनेकों बार कोसा  था  कि मै  क्यों आ गई यहाँ ....और अभी जो कुछ भी वहाँ हुआ और हो रहा है ... ...उसे देख दिल बड़ा व्यथित हो रहा है ...अपने दिल के कुछ ऐसे हीं भावों को प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही हूँ ......


सिसक रही चट्टान 
आसमां है रो रहा 
निस्तब्ध है निशा 
ये कौन जा रहा बहा ?

किसी की आँखों का तारा 
किसी के जीने का सहारा 
काल-कवलित हो गया 
देखते हीं देखते 
प्रलय कहाँ से आ गया ?

नदी जो कल-कल गाती थी 
सड़कें भी इठलाती थी 
वो आज वीरानों में 
खुद से नज़र चुराती है 
कैसे भूल जाए कोई ?
यादें याद आती है ...

प्रकृति से खिलवाड़ का 
होता भयानक परिणाम 
नाम जिसका गुँजता  था 
वो हो गए बेनाम .....  

कर कल्पना उनकी 
रूह काँप जाती है 
बिछुड़ गए जो अपनों से 
उनके लिए आँखें भर-भर आती हैं .....

सत्ता ,पैसा ,जिस्मफरोशी 
में हो जाते हैं मदहोश 
अव्यवस्था का पर्याय बन गया 
प्य्रारा भारत देश ....
मरने वाले दोषी नहीं थे 
सारे थे निर्दोष 

हर गली में रावण घूमता 
धर कर राम का वेश 
कौन बने हनुमान  ?
जो पहुचाये सीता तक सन्देश ....

दुर्योधन और शूर्पनखा की जाति न कोई होती 
इतिहास पुनः दुहराया जाएगा 
सोच प्रकृति पल-पल रोती ....

कौन समझे ये बात 
सभी पे .....लालच रुपी पहरे हैं ..
सुरा -सुन्दरी में लिप्त ....
प्रशासक सभी बहरे हैं .....

आस्था ,निष्ठा और भक्ति को 
यूँ व्यर्थ न भुनाओ 
धार्मिक स्थल को धार्मिक हीं रहने दो 
उसे पर्यटन स्थल न बनाओ .....




Wednesday, June 19, 2013

बन जाते हैं वही मन -मीत ...

खुशियाँ तुम को मिले हमेशा 
मेरी हार हो तेरी जीत 
पल-पल तुम्हें   दुआएँ देता 
ऐसे हैं अलबेले गीत .....

मन हँसता पर दिल रोता है 
पीर बन जाती है गीत 
जिसे परख नहीं हमारी 
बन गए वही हमारे मीत .....

जीवन की ये रीत पुरानी 
कुहूके कोयल ...  नाचे मोर 
मीत बिना सब सूना होता 
चाँद को ढूंढे व्याकुल चकोर ....

विरह-व्यथा शब्दों में ढलकर ..
बन जाते है विरही गीत
 जिसे खबर नहीं हो पाती 
बन जाते हैं वही मन -मीत ...

Tuesday, June 4, 2013

.लम्हा-लम्हा जिन्दगी का

बिखरे सपने
बिछुड़े  अपने
दिल दर्द में 
डूबता है .....
.लम्हा-लम्हा जिन्दगी का 
आगे बढ़ता है .....


चले गए जो ..
नहीं ...मिलेंगे 
दिल रह-रह कहता है ...
यादों में उनके 
व्याकुल होकर 
मन मचलता है .....

सतरंगी सपनों को राही 
फिर भी  गढ़ता है ...

अपने हैं तो सपने हैं 
सपने हैं तो जीवन 
आना -जाना 
लगा रहेगा ....समझो ..मेरे मन .......


Saturday, June 1, 2013

दीदारे-यार

दिल से दिल मिले तो ....
प्यार होता है 
दिलो - दिमाग मिले तो .....
दीदारे-यार होता है 

Friday, May 24, 2013

दिल बंजारा

फूलों का  खुशबू से 
 बादल का बूँदों से
रवि का किरणों से 
झरनों का  जल से .....
जनम -जनम का नाता है ....
तनहाई के आलम में 
दिल बंजारा गाता है ....

Sunday, May 12, 2013

.वो केवल और केवल ....माँ थी ....

जब भी मैं घबराती 
भीड़ से कतराती 
एक अनोखी ढाल लिए वो ...
सामने मेरे आती ....                          


कहतीं वो मुझसे 
हाथी चले बाजार तो…… 
कुत्ते भौकें हजार 
इन कुत्तों से घबराना क्यों ?
दिल को अपने सहमाना  क्यों ?

जब भी मैं कभी  उन्हें उदास दिखी 
मुस्कुराते हुए कहा उन्होंने ...
निशा ..तुम्हारी किस्मत ..भगवान् ने ..(शायद हर माँ ऐसा विश्वास दिलाती                                                                                                                                                                                           
                                                          है  अपने बच्चे को )
                                                              
सोने के कलम से लिखी .....

इसीलिए कभी जिन्दगी में 
उदास नहीं होना 
परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हो 
हरदम हँसती  रहना .....

याद रखना ..
पानी की अधिकता और कमी से 
पौधे रहते हैं कुम्भलाये 
जो मिल-जुलकर खाए 
वही राजा  घर जाए ......

राजा  और रानी की कहानी उसने 
कई बार सुनाई थी ....
बिना कहे कई बातें अनजाने में ..हीं ...
सिखाई थी .....

माँ बनकर जान गई 
कितना कठिन होता है 
माँ की भूमिका निभाना 
आसान नहीं होता 
बच्चों को अच्छी बातें सिखलाना ...

आज वो नहीं होकर..... भी है .....
मेरी हँसी की खनक में 
मेरे चेहरे की चमक में ......

वो कल भी थी ..
वो आज भी है ....
वो कल भी रहेगी ..
                  क्योंकि ... वो
 न औरत थी
न पत्नी थी  
 न बहन थी 
न बेटी थी ....वो केवल और केवल ....माँ थी .....







Tuesday, April 30, 2013

बेशक ...

मन का पाखी 
उड़ता जाये 
बीते पल को 
कौन लौटाए ......

माँ की ममता 
पिता का प्यार 
बहन और भाई 
से तकरार .....

यादें याद आती हैं 
उन गलियों में 
ले जाती है .....

क्यों हो मन 
इतना उदास ?
बिखर गए जो 
बस जायेंगे 
करना होगा 
तुम्हें प्रयास ......

ख़ुशी के पल 
जब नहीं रहे ..तो… 
दुःख के भी हट जायेंगे 
मधुरिम यादें ..
कड़वी हुई  ,......तो .....
मीठे भी हो जायेंगे ....

बीते पल के साए में 
भविष्य अंकुरित होता है  
अंकुरण की इसी 
प्रक्रिया में 
जीवन का सत्य छिपा होता है 




सत्य को अपनाओगे 
तभी सत्य को तुम पाओगे ......
आओ सत्य को पाने के लिए 
करें हम प्रयास .....

अतीत की छाँह तले 
वर्तमान को खिलखिलाने दें 
सतरंगी सपने लिए भविष्य को गुनगुनाने दें ....

बेशक .......
बीते पल को याद रखें.... पर .....
वर्तमान को कभी हाथ से न जाने दें 
हाथ से न जाने दें ......




Monday, April 22, 2013

ओ दिमाग वाले



जहाँ जोड़ना चाहिए 
वहाँ घटा देती हूँ 
जहाँ घटाना चाहिए 
वहाँ जोड़ देती हूँ 

तुम  कहते हो  ..मै ...हमेशा 
कैलकुलेशन में लगी रहती हूँ 

ऊपर वाले की माया है ये 
ये तो वही जाने ...

मेरी किसी बात को 
कभी ना तुम  माने 

ओ दिमाग वाले ...

दिमाग के सारे काम 
दिल से निबटाती हूँ ....
इसीलिए हमेशा .
.कैलकुलेशन में गड़बड़ा जाती हूँ ....

दिल और दिमाग से 
विश्वास के बलबूते ..मैं  ..
एक हीं काम करती हूँ 
जितना फैल सकती हूँ 
फैल जाती हूँ ....

अगले हीं पल पुनः  
सिमट जाती हूँ ....

इस क्रम में 
जमीं मेरी राहों में 
आसमां मेरी बाँहों में और 
खुशियाँ निगाहों में होती है ..

जमीं ,आसमां और खुशियों के बीच ....तुम्हें   ...ये 
कैलकुलेशन कहाँ दिख जाता है ? 
कल भी  मुझे मालुम न था 
न आज  कुछ पता है ......

Wednesday, April 17, 2013

इसीलिए ..निशा ......

पिताजी ने सिखलाया था कि .....गर ...

राह के काँटे तन और मन को ..लहुलहान ..करने लगे ..तो  ?
राह बदल लेना 
सामने के नज़ारे ..
दिल को दहलाने लगे ..तो…?
आँखें मूंद लेना ...

मित्रता में अगर .....
समानता  न हो 
समभाव न हो 
मैत्रीभाव न हो ..तो ..?

ऐसी मित्रता को छोड़ देना ..क्योंकि ..

मंजिल स्पष्ट है तो रास्ते  मिल हीं जायेंगे 
आँखें हैं तो नज़ारे भी दिख जायेंगे 
जिंदगी रहेगी तो ...?
मित्र भी बन जायेंगे ....किंतु .....

खुद की नज़रों से गिरकर ..
कैसे जी पाओगी ?

इसीलिए ..निशा ......

जिन्दगी में हर फैसला 
सोच -समझ कर करना 

खुद की नज़रों में गिर जाओ 
ऐसा काम कभी नहीं करना .....

Saturday, April 13, 2013

रात मेरे सपने में .....





रात मेरे सपने में 
मेरी दीदी  आई थी 
मेरे दर्द का एहसास ...शायद ...
उसकी रूह को  खींच लाई थी ....

देख ग़मगीन मुझे  .   उसने     .सिर्फ
 इतना हीं कहा ...

जिसे छोड़ चुकी हो क्यों,... उसे..?
 याद करती हो ?
वेबजह क्यों खुद को 
उदास करती हो ...

ऐसा लगा जैसे  
मरुस्थल में मीठे ..
पानी का सोता मिल गया 

रिसते हुए जख्म पर .मानों .
शीतल मरहम लग गया .....

उदासी भरे पल  को 
अतीत  का झरोखा मिल गया 
वर्तमान के  दुःख का बादल ..
खुशियों से ढँक गया ......

दिल को हुआ यकीन ..
दीदी,...... तुम हो यहीं कहीं ..



तुम्हारे  आसपास होने का 
एहसास हीं मन को संबल देता है 
मालूम  है मुझे  कि ....

जीवन पथ पर हर इंसान
 अपने दम पर हीं खड़ा होता है ....
अपने दम  पर हीं खड़ा होता है ......


.


Tuesday, April 9, 2013

सब कुछ


सोचा न था जो सपनों में

 वो आज सामने आया है 

बनकर यादें ...कुछ भूली सी

 इक याद दिलाने आया है      

  पाकर तुमको ..तेरे अपनेपन को     

    ह्रदय   से लगाए बैठी हूँ ..    

    सब कुछ पाया ..सब कुछ खोया        

  तुम-तुम हीं रहे ..मैं -मैं न रही ...

Friday, April 5, 2013

होते हीं हैं ......

रात में सहर
फूल में काँटें
मोहब्बत में मुलाकातें ....


दिल में दर्द
आँखों में सपने
परायों में अपने .....


समुन्दर में लहरें
बाग़ में भँवरे
ज़ख्म  बड़े गहरे ...


स्वार्थ में छल
जीत में हर्ष
जीवन में संघर्ष .....होते हीं हैं .....

Tuesday, April 2, 2013

अंतत:

          

चूल्हे में सुलग रही लकड़ी से

 पासवाली लकड़ी बोली ....

क्यों .....सुलग रही हो बहना ? 

बेहिचक तुम बोलो ....

गैर नहीं, हूँ अपनी .....भेद दिल के   खोलो .....

 सुलगती हुई लकड़ी तब ...धीरे से बोली ..

ये मत सोचना कि धुओं और ..चूल्हों के बीच 

पहचान मेरी खो गई है ...

 सच तो यही है बहना  कि ...

मेरी यात्रा ..अंतत:पूरी हो गई है ......

 विषम परिस्थितियों में भी मैं ..

.कभी नहीं हारी ....

कर लो हिम्मत तुम भी ..

आएगी तेरी भी बारी .....

 बनते हीं  ज्वाला दसों दिशाएं

 मुझसे मिल रहीं हैं ....

सुलग-सुलग कर आखिर ...

मेरी मंजिल मुझको मिल गई है ...

मंजिल मुझको मिल गई है .....  

Thursday, March 21, 2013

अब की सजन मैं ..होली.....



.होली के अवसर पर पति महोदय  पत्नी को काम की वजह से 
घर नहीं आ पाने की मजबूरी बता रहे हैं ....परिणाम 
गुस्सा ,शिकायत या कुछ और.... होता है ..आइये इस                                                                           
कविता के माध्यम से जानते हैं .....


क्या ..काम बहुत है ...इस बार होली ..
में नहीं आ पाओगे .......?

मत आना परदेशी पिया मैं ......
कुछ नहीं बोलूँगी ....
अब की सजन मैं ..हो..ली ....
आपके दोस्तों के संग खेलूंगी .....

लाल,पीले ,हरे, गुलाबी ..
रंग मुझे भिजवा देना 
कौन-कौन से दोस्त यहाँ हैं ..?
उनके मोबाइल नम्बर भिजवा देना ....

गली ,मोहल्ले .घर-बाहर सभी ..
देवरों और जीजाओं के नामों  की सूची बनाकर 
छप्पन पकवान बनवाऊगी ....आग्रह करके बार-बार                                                     
सभी को घर आपके बुलवाऊंगी .....
अगली होली भी साथ खेलूंगी उनके 
सबको विश्वास दिलाऊगी ......

सुबह-दोपहर रंग लगाकर 
शाम में गुलाल लगाऊगी ..
अब की होली में सजन मैं ..
झूम-झूम के गाऊँगी ......

मरुस्थल में फूल ...कमल....का ....?
किस्मत से हीं खिला है .....
होली में बंधनमुक्त रहने  का मौका ...
पहली बार मिला है .....
इस मौके का फायदा ...
जीभर ..मैं ..उठाऊगी ....
जीवन के सारे कडवाहट ..
रंगों के साथ भूल जाऊँगी ..
अब की सजन मैं ..होली ...में 
अल्हड बाला  बन जाऊँगी ....


बनकर तितली मैं ..बगिया के ..
हर फूल पर मंडराऊगी ...
इस बगिया से उस बगिया तक 
मर्जी से लहराऊंगी ..
अब की सजन मैं होली में ..
झूम-झूम के गाऊँगी ......

होली के दिन देखिये क्या होता है .......

बसंत दूत की मीठी कूक 
बगिया में लहराई ...
रंगों के माहौल में वो .....
ख़ुशी  से चिल्लाई ...

असम्भव को संभव कर दिया 
हो निशा बड़ी नशीली ..
खाका खींचा औरों के संग ..पर…. 
खेली पिया संग होली ......

एक पत्नी होने के नाते हर महिला  को 
अपने पति की कमजोरी के बारे में जानकारी 
रखनी चाहिए कई बार बिना झगडा या गुस्सा किये ही 
काम हो जाता है .....
वैसे भी पति नामक  इंसान  अधिकतर दोहरी मानसिकता वाले 
होते हैं ..खुद तो दूसरों की बीवी पर नज़र रखते हैं पर अपनी 
बीवी को ज़माने की निगाहों से बचाकर रखना चाहते हैं ....
वस्तुत:बड़े कमजोर होते हैं ...पति बनाम पुरुष  ....बुरा न मानों होली है ....





Friday, March 15, 2013

समय की पुकार

ओ द्रुत वेगमयी गंगा .....
किससे  मिलने जा रही हो ?
बिना रुके तुम मस्ती में
क्यों इतना इठला रही हो ?

आगे बढ़कर पीछे आती
हुलस-हुलस  जाने क्या गाती
स्वच्छ मनोहर झागों में बंटकर
शीतलता बिखरा रही हो,....

कौन छूट गया पीछे तेरा ?
जिसको लेने जा रही हो ?
ओ फेनिल धारों वाली गंगा
किससे  मिलने जा रही हो ?



आगे बढती कभी न रूकती
मस्ती में तुम कभी न थकती
आगे बढ़ना ,पीछे मुड़ना
सबको साथ लिए हीं चलना .....



बिना बोले ,बिना शोर किये हीं
 मूलमंत्र ....सिखला रही हो ....
ओ ..द्रुत  वेगमयी गंगा ....
किससे मिलने जा रही हो ?

सोचो  ! क्या ...?
सागर हीं तेरा सत्य है ?
तेरे जीवन का औचित्य है ?


तेरा सत्य तुम्हें पुकार रहा है ....
तुन्हें ...तुम्हारी राह  बता रहा है
बनोगी गर तुम .....

किसी भीड़ का हिस्सा ?
कैसे रच पाओगी बहना ..
खुद का कोई किस्सा ?


सागर में मिलते हीं तेरा
स्वरुप ....खो जाएगा
तेरा तुझमें कुछ न रहेगा
सब खारा हो जाएगा
जिस दिन मिलन तुम्हारा आली ..
सागर से हो जाएगा .....

चंद  खुशियों की खातिर
छोड़ों सागर से मिलने की आस
तुमको अब गढ़ना ही होगा
एक नया इतिहास .....



समय की पुकार यही है
संकल्प तुम्हें अब करना होगा
तोड़ के सारी बाधाओं को
तुम को आगे बढ़ना होगा ....
तुमको  आगे बढ़ना हीं  होगा .......