Friday, April 18, 2014

उन्हें मालूम नहीं

एक बार फिर किसी ने 
भरते जख्मों को झिंझोड़ा है 
चुनौतियों का समन्दर है 
सम्बल बहुत थोड़ा है.…पर… 

                          उन्हें मालूम नहीं 
लोहे से बनीं नहीं मैं..... जो.…
टूट कर बिखर जाऊँगी 
मोम सी प्रकृति है मेरी,,, मैं.…
पिघलकर फिर जम जाऊँगी

माँ-बहन-बेटी -पत्नी या प्रेमिका हीं नहीं मैं..... 
सृष्टि का  आधार हूँ 
आहों के बीच पली मैं 
खुशियों की किलकारी हूँ 
चुनौती देनेवाले हर शख्स की आभारी हूँ 
जीवन को जीवन देनेवाली मैं 
एक संवेदनशील नारी हूँ.……