
क्या छोडूँ ?
क्या पास रखूँ ?
दिन-रात सुलगते,...
अरमानों से ...
क्यों न दो-दो हाथ करूँ ?
जो होना है ..वो ...
हो कर रहेगा ...(मैं भाग्यवादी नहीं कर्मवादी हूँ )
क्यों ? तुम से
फरियाद करूँ .....
साल दर साल आगे बढ़ी
कितना कुछ पीछे छूट गया .....
देखते ही देखते .....
काफ़िला आँखों से ...
ओझल हो गया .....
तुमने दिया
तुम ही ने लिया
क्या दोष था मेरा .....
समझ नहीं पाई अब तक ....
सत्य क्या है तेरा ?
दर्द के दरिया में
दिल जब घबराता है
तभी जिन्दगी तेरा ....
असली रूप नज़र आता है ......
तूने आजमाया अबतक ...
अब मैं आज्माउंगी ....
वादा है ऐ जिन्दगी ..
तेरा साथ निभाउंगी ....