चम-चम -चम चमकते हो
अग्नि जैसे दहकते हो
उमंग-उल्लास या फिर
जो है उसमें संतुष्ट रहने की चाह
नहीं किसी से कोई आस
क्या वजह है तेरी खुशियों की ?
बता दे मुझको ओ पलाश -----
मौसम-मस्ती और तन्हाई
लिए साथ में खुशियाँ आईं
सौंन्दर्यविहीन वसुंधरा पे
भाव -विभोर हो जाते हो -----
पथभ्रष्ट मुसाफिर को
ये मूलमंत्र बतला देना
जो दिया है उसको प्रकृति ने
उसमें जीना उसे सिखा देना
मेरे,उसके,सबके मन में------
ओ पलाश तुम छा जाना--
ओ पलाश तुम छा जाना----
अग्नि जैसे दहकते हो

जो है उसमें संतुष्ट रहने की चाह
नहीं किसी से कोई आस
क्या वजह है तेरी खुशियों की ?
बता दे मुझको ओ पलाश -----
मौसम-मस्ती और तन्हाई
लिए साथ में खुशियाँ आईं
सौंन्दर्यविहीन वसुंधरा पे
भाव -विभोर हो जाते हो -----
पथभ्रष्ट मुसाफिर को
ये मूलमंत्र बतला देना
जो दिया है उसको प्रकृति ने
उसमें जीना उसे सिखा देना
मेरे,उसके,सबके मन में------
ओ पलाश तुम छा जाना--
ओ पलाश तुम छा जाना----