
भरते जख्मों को झिंझोड़ा है
चुनौतियों का समन्दर है
सम्बल बहुत थोड़ा है.…पर…
उन्हें मालूम नहीं
लोहे से बनीं नहीं मैं..... जो.…
टूट कर बिखर जाऊँगी
मोम सी प्रकृति है मेरी,,, मैं.…
पिघलकर फिर जम जाऊँगी
माँ-बहन-बेटी -पत्नी या प्रेमिका हीं नहीं मैं.....
सृष्टि का आधार हूँ
आहों के बीच पली मैं
खुशियों की किलकारी हूँ
चुनौती देनेवाले हर शख्स की आभारी हूँ
जीवन को जीवन देनेवाली मैं
एक संवेदनशील नारी हूँ.……