
Thursday, December 3, 2015
Monday, October 12, 2015
बातें अनकही

कुछ अनकही रह जाती है
अपनों की अपनी सी बातें
रह-रह कर तड़पाती है ----
चले गए जो पूरा कर
अपने सारे काम
पहुँचा देना प्रभू--- उन तक ---
मेरे प्यार का पैगाम
जिनके दिए संस्कारों से
पथ अपना आलोकित करती हूँ
यादों को उनके संग लिए
हर पल आगे बढ़ती हूँ ---
मिलना बिछुड़ना
जन्म - मृत्यु
जीवन की है रीत
करती हूँ तहेदिल से बाबुल
तुम्हें श्रद्धा -सुमन अर्पित---
सर्वपितृ अमावस पर माँ और बाबूजी को समर्पित हैं मेरे दिल के ये उदगार।
Wednesday, September 30, 2015
मगर ---

अपनी धुन में मस्त
निर्झरणी से पूछा ---- लोग आते हैं
डुबकी लगाते हैं और
चले जाते हैं ---
उनका ये कृत्य
तुम्हारे दिल को नहीं दुखाता ?
होंठों पे मुस्कान लिए बोली निर्झरणी ---
जीवन में ख़ुशी औ गम
आने-जाने वालों से ही मिलता है
आवाजाही से हीं उनके
मेरा तट भी संवरता है
सच पूछो तो
दोस्ती और रिश्तेदारी
इन्हीं संबंधों का है नाम
मगर ---
नहीं सोचते लोग कि
गलत कृत्यों का उनके
क्या होगा अंजाम !
जब कोई अपनी हद से परे जाकर
मेरे दिल को दुखाता है
तब --मैं भी दिल पर पत्थर रख
दिमाग को समझा लेती हूँ
और ऐसे इंसान को
बेहिचक डुबो देती हूँ --
सुन निर्झरणी की बातें
निशा का दिल भर आया ----
जीवन के गूढ़ तत्वों का रहस्य
प्रकृति ने उसे समझाया…
Wednesday, September 9, 2015
Saturday, August 8, 2015
Wednesday, June 24, 2015
छोटी-छोटी बातें
दुर्गम पथ के कठिन पलों में साथ न होगा कोय
सोच समझ पथ चुनो मुसाफिर तृष्णा का अंत न होय।
कृत्रिमता से दूर होकर चलें प्रकृति की ओर
जो अपना खुद का हुआ नहीं वो औरों का क्या होय।
विषाद में भी हर्ष है जीवन एक संघर्ष है
संघर्षों से लड़ना है हर पल आगे बढ़ना है।
दिल के रिश्ते अनजाने ही जुड़ जाते हैं
खिलना हो फूलों को तो वीरानों में भी खिल जाते हैं।
जीवन ख़ुशी और ग़मों का संगम है
परिवर्तन प्रकृति का नियम है।
दुविधाग्रस्त होना कमजोरी की निशानी है
दो किनारों के बीच बहे तो नदी वरना … बहता हुआ पानी है।
अतीत तूँ जा मैं खुश हूँ अपने वर्तमान के साथ
तेरी मेहरबानियों को मैं भूल चुकी हूँ
भविष्य की कल्पना में मैं डूब चुकी हूँ।
दुःख और दर्द जिंदगी का हिस्सा है
सृजन के पीड़ा का अनोखा ये हिस्सा है।
वर्तमान , अतीत और भविष्य जब आपस में टकराता है
दिल खिलता पर यादें रोती है समय सहम तब जाता है।
उड़ो जी भर खग पर अपने घोंसले को मत छोड़ना
बात भले छोटी हो पर किसी के भरोसे को मत तोडना।
मान भले मत दो पर अपमान नहीं चाहिए
ज्ञान दे दो मगर एहसान नहीं चाहिए।
राह बदलते हीं राहगीर बदल जाते हैं
उम्र के हर पड़ाव पे जैसे ख़्वाब बदल जाते है। .
जिंदगी की इन छोटी-छोटी बातों में बड़ी से बड़ी सच्चाइयाँ छिपी हैं.… महसूस करके देखिये ....

कृत्रिमता से दूर होकर चलें प्रकृति की ओर
जो अपना खुद का हुआ नहीं वो औरों का क्या होय।
विषाद में भी हर्ष है जीवन एक संघर्ष है
संघर्षों से लड़ना है हर पल आगे बढ़ना है।
दिल के रिश्ते अनजाने ही जुड़ जाते हैं
खिलना हो फूलों को तो वीरानों में भी खिल जाते हैं।
जीवन ख़ुशी और ग़मों का संगम है
परिवर्तन प्रकृति का नियम है।
दुविधाग्रस्त होना कमजोरी की निशानी है
दो किनारों के बीच बहे तो नदी वरना … बहता हुआ पानी है।
अतीत तूँ जा मैं खुश हूँ अपने वर्तमान के साथ
तेरी मेहरबानियों को मैं भूल चुकी हूँ
भविष्य की कल्पना में मैं डूब चुकी हूँ।
दुःख और दर्द जिंदगी का हिस्सा है
सृजन के पीड़ा का अनोखा ये हिस्सा है।
वर्तमान , अतीत और भविष्य जब आपस में टकराता है
दिल खिलता पर यादें रोती है समय सहम तब जाता है।
उड़ो जी भर खग पर अपने घोंसले को मत छोड़ना
बात भले छोटी हो पर किसी के भरोसे को मत तोडना।
मान भले मत दो पर अपमान नहीं चाहिए
ज्ञान दे दो मगर एहसान नहीं चाहिए।
राह बदलते हीं राहगीर बदल जाते हैं
उम्र के हर पड़ाव पे जैसे ख़्वाब बदल जाते है। .
जिंदगी की इन छोटी-छोटी बातों में बड़ी से बड़ी सच्चाइयाँ छिपी हैं.… महसूस करके देखिये ....
Sunday, May 10, 2015
पता नहीं क्यों ----माँ -----
सच कहूँ माँ.....
मुझे तुम्हारी नहीं
तुम्हारी उन बातों कि याद आती है
जब मुझे रुलानेवाले से तुम
हमेशा कुपित हो जाती थीं
बड़े प्यार से --मान --मनुहार से
मनपसंद खाना खिलाती थी
जब किसी वजह से मैं
खुद से हीं रूठ जाती थी
मेरे सपने , मेरी खुशियाँ थे
तेरे जीवन के आधार
मनोयोग से करती थीं
उन सपनों को साकार
तेरे बिन ------
जीवन के इस धूप -छाँह में
संघर्षों के सबल बाँह में
जब अनायास मुस्कुराती हूँ
उसी समय
पता नहीं क्यों ----माँ -----
तुम बहुत --बहुत ---बहुत --बहुत याद आती हो।
सभी माँओं को समर्पित है मेरे दिल के ये उदगार । माँ अपनी बेटियों को सिर्फ आत्म विश्वास रूपी पंख दे --जीवन का जंग वो खुद ही जीत लेगी।
मुझे तुम्हारी नहीं
तुम्हारी उन बातों कि याद आती है
जब मुझे रुलानेवाले से तुम
हमेशा कुपित हो जाती थीं
बड़े प्यार से --मान --मनुहार से
मनपसंद खाना खिलाती थी
जब किसी वजह से मैं
खुद से हीं रूठ जाती थी
मेरे सपने , मेरी खुशियाँ थे
तेरे जीवन के आधार
मनोयोग से करती थीं
उन सपनों को साकार
तेरे बिन ------
जीवन के इस धूप -छाँह में
संघर्षों के सबल बाँह में
जब अनायास मुस्कुराती हूँ
उसी समय
पता नहीं क्यों ----माँ -----
तुम बहुत --बहुत ---बहुत --बहुत याद आती हो।
सभी माँओं को समर्पित है मेरे दिल के ये उदगार । माँ अपनी बेटियों को सिर्फ आत्म विश्वास रूपी पंख दे --जीवन का जंग वो खुद ही जीत लेगी।
Wednesday, April 1, 2015
Wednesday, March 25, 2015
Sunday, March 8, 2015
तम से घिरे अमावस में अब

मौसम भी है बदल गया
योग्यतम की अतिजीविता
का शिकार माँ का लाल हो गया
स्वाइन फ्लू कहर बनकर
जिन की खुशियों पर छा गया
क्या होली क्या दिवाली
क्या मायने हैं शेष जीवन के
उनको ढांढस कौन बँधायेगा ?
तम से घिरे अमावस में अब
चाँद कहाँ से आएगा ?
मन्दसौर के २३ वर्षीय युवा इंजीनियर आशुतोष के असमय निधन पर अश्रुभरी श्रद्धांजलि ---भगवान उसकी आत्मा को शांति दे और उसके परिवार वालों को दुःख सहने की शक्ति ।
Thursday, February 19, 2015
विषपान
अहिल्या-सहगामिनी होने के नाते
पति की इच्छा का सम्मान करना
तुम्हारा धर्म था
पर उनमें आये
अनायास परिवर्तन को
पहचानना भी तो
तुम्हारा कर्म था
कठपुतली न बन
अपने विवेक का
किया होता उपयोग
अपने आसपास
घटी घटनाओं का
रखा होता ध्यान
तो असली-नकली
सही-गलत की
शीघ्र हो जाती पहचान
गौतम ऋषि की कुटिया
न पडी होती यूँ सुनसान औ विरान
न हीं पत्थर की प्रतिमा बन
पल-पल करना पडता
व्यथा और ग्लानी का
पति से वियोग का
असहनीय अपमान का
सदियों तक विषपान।
मेरी बहुत पुरानी रचना । मन में आये भावों को लिख लेती हूँ। मुझे ऐसा लगता है कुछ पौराणिक बातें प्रतीक है जो हमारी सभ्यता एवं संस्कृति को निखारने का काम करती है.सभी मेरे विचारों से सहमत हो आवश्यक नहीं।इस रचना के माध्यम से मैं ये कहना चाहती हूँ की अगर शरीर में आये परिवर्तन को महसूस करें तो बीमारी का उचित समय में इलाज़ कराया जा सकता है और पति -पत्नी एक दूसरे के स्वभाव में आये परिवर्तन को महसूस करे तो परिवार को बिखरने से रोका जा सकता है। । किसी की कमियों को रेखांकित करना मेरा उद्देश्य नहीं है। कृपया रचना के मूलभाव को समझने का प्रयास करें। धन्यवाद।
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